नवोदय की कुछ यादें और गुज़रा हुआ दशक ( दस साल)
मेरी हाथों से निकला जा रहा है यह कीमती साल 2017, यूँ तो कई बार नवोदय याद आता है लेकिन यह वो साल रहा जिसने नवोदय विद्यालय (किशनगंज) के शुरुआती दिनों की याद शिद्दत से दिलाई क्योंकि इसी वर्ष 23 जुलाई 2017 को नवोदय विद्यालय में एक अलग ज़िंदगी शुरुआत करने के 10 वर्ष पूरे हो गए , जिसकी शुरूआत मैं 10 साल पहले 23 जुलाई 2007 को कर चुका था.
बहुत खुश किस्मत महसूस करता हूँ कि मुझे अपनी ज़िंदगी के कीमती 7 वर्ष (2007-2014 ) नवोदय विद्यालय में बिताने का मौका मिला.
अपनी ज़िंदगी के 13वें वर्ष में एक छोटा सा बक्सा और चंद ख्वाबों व उम्मीदों को लिए किशनगंज के उस छोटे से "मोतीहारा" नाम के गाँव में स्थित नवोदय विद्यालय में जब मैं गया था तब मुझे थोड़ा भी अंदाज़ा नहीं था कि मेरे रब ने मुझे कितना बड़ा तोहफ़ा दिया है और मुझे इसका भी अंदाज़ा नहीं था कि जब मैं यहाँ से पढ़कर निकलूँगा तो मैं एक बेहतरीन ऊर्जा और एक्सपीरियंस लेकर निकलूँगा.
वो कल्चरल प्रोग्राम का 'स्टेज' आकार में बहुत छोटा था लेकिन उसी स्टेज ने मुझे महफ़िल में बोलना सिखाया, सिखाया के किस तरह लोग आपकी टूटी फूटी कविताओं पर तालियाँ बजा बजा कर आपको कुछ बेहतर लिखने के काबिल बना सकते हैं । उस क्लासरूम की पहली बेंच और डेस्क जिस पर मैं बैठता था उसने मुझे महफ़िल में बैठना सिखाया कि महफ़िल में बैठते कैसे हैं । उस क्लास के बेंच और डेस्क आज हम से खाली हो सकते हैं , लेकिन अनगिनत यादें वहाँ जमी हुई है । यह वही विद्यालय है जहाँ के क्लासरूम से दिसम्बर 2010 से मैंने कविता लिखना शुरू किया.
यह वही विद्यालय था जिसने मुझे दूसरे मज़हब के लोगों ( जैसे हिन्दू भाई बहनों ) को समझने का मौका दिया । जिसने मुझे एक ऐसा माहौल दिया जिसमें हम साथ रहते खाते पीते कई बार तो एक ही थाली में..... इसने मुझे धार्मिक सद्भावना बेहतर तरीके से सीखाया और मुझे खुशी है कि जहाँ राजनीति एक ओर लोगों को आपस में तोड़ने में लगी है, वहीं ये विद्यालय हिन्दू मुस्लिम एकता की सीख छोटे छोटे बच्चों के दिमाग़ में बचपन में ही भर दे रहा है.
मैथ और साइंस मेरे बहतरीन कमज़ोर सब्जेक्ट्स में से एक था और मुझे खुशी है कि मैं तकरीबन कई बार उसमें फेल हुआ । क्योंकि अगर उसमें सैकड़ों बार फेल नहीं होता तो मैं ये कभी जान नहीं पाता कि मुझे ज़िंदगी में क्या नहीं करना है और किस फील्ड में नहीं जाना है । यकीन मानिये, ज़िंदगी में क्या नहीं करना है अगर आप जान लेते हैं तो बहुत सी समस्या हल हो जाती है क्योंकि बहुत तब कम ही चीज़ बचती है जो करनी होती है.
जैसा कि हर किसी के ज़िंदगी में होता है , कभी कभी आप ज़िंदगी के उतार चढ़ाव से घबरा जाते हैं , मैं भी घबरा जाता था लेकिन उस गणित और विज्ञान के परीक्षाओं के डर को नजरअंदाज कर दें तो मैं कहूँगा की 2 शिक्षक मेरी ज़िंदगी में मुझे बड़े किस्मत से मिले जिन्होंने मेरी ज़िंदगी को 360 डिग्री मोड़ दी , यकीनन ये हो सकता है कि दूसरों की नज़रों में नहीं, खुद की नज़रों में ही सही ...और सच कहूँ तो खुद की नज़र ही मायने रखती है.
मैं जानता हूँ कि मैं आज कोई कामयाब इंसान नहीं हूँ , लेकिन ये फेसबुक पोस्ट लिखते वक़्त मैं ये ज़रूर महसूस कर रहा हूँ कि मैं आज कुछ न कुछ तो हूँ जो कल तक कुछ भी नहीं था , मेरे उतार चढ़ाव के दिनों में मुझे समझने और मेरा हाथ थामने वालों में उन दो शिक्षक हिंदी के Pradip Choudhary & गणित के
Azaz Ahmed सर का बहुत बड़ा योगदान था । ये दोनों ही नवोदय किशनगंज के हैं । जहाँ हिंदी के शिक्षक ने मुझे बताया कि मुझमें क्या गुण है और मैं क्या कर सकता हूँ , वहीं दूसरी तरफ़ गणित के शिक्षक ने मुझे बताया कि मुझे क्या नहीं करना चाहिए । यकीनन मुझे आज भी गणित का कोई फॉर्मूला याद नहीं , लेकिन ज़िंदगी जीने का फार्मूला उस गणित के महान शिक्षक ने बखूबी बताया और आज दिल में उन दोनों की बड़ी ईज़्ज़त है.
नवोदय विद्यालय कटिहार के मेरे हयूमैनिटिज़ (आर्ट्स) स्ट्रीम के इकोनॉमिक्स टीचर Jainath Mahtha सर भी कमाल के थे , कभी निराश होने नहीं देते थे , हमेशा हम सब को प्रोत्साहित किया करते थे, इनके बारे फेयरवेल के दौरान मैं कह चुका था कि इनके जैसा मोटिवेट करते वाला शिक्षक अगर आई आई टी जैसे बड़े बड़े संस्थानों में हो तो कोई भी अपनी ज़िंदगी से निराश होकर आत्महत्या नहीं करेगा.
इसी नवोदय कटिहार ने मुझे आत्मविश्वास से भर दिया था । नवोदय कटिहार के प्राचार्य Rajeev Ratan Shukla जो अब इस दुनियाँ में नहीं रहे , उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया था कि " नेहाल ! अपनी कविता के किताब जब लिखोगे तो कुछ हमें भी देना दो चार पन्ने लिखने को और साथ ही लास्ट मुलाकात में कहे थे कि " एक रोज़ आएगा जब तुमको सुनने के लिए मुझे "पास" लेकर अंदर जाना पड़ेगा "...... मेरे विद्यालय के प्राचार्य कह रहे थे, मुझ जैसे के लिए ये बहुत बड़ी बात थी । अंग्रेज़ी के त्रिवेदी सर को आज भी याद करता हूँ जिनकी वजह से अंग्रेज़ी से भी मोहब्बत हो पाई, होस्टल में मेरी कविताओं पर उनका कमेंट ज़रूर मिलता था.
मैं आज कामयाब इंसान नहीं लेकिन नवोदय ने मुझे Nothing से आज Something तो बना ही दिया है , कुछ नहीं तो इतना तो बना ही दिया कि मैं खुद पर विश्वास कर सकूँ.
और भी बहुत कुछ है सीने में दफ़न, लेकीन फ़िर कभी आगे कहूंगा जब Nothing से शुरू हुआ सफ़र मुझे Something के स्टेशन से थोड़ा और आगे ले जाएगा.
फिलहाल बेहतरीन पल और यादों के लिए शुक्रिया नवोदय.....
( यह लेख करीब अक्टूबर 2017 में लिखा गया है जिसमें लेखक के विचार मौलिक हैं )
~ नेहाल अहमद, भूतपूर्व छात्र - जवाहर नवोदय विद्यालय (जेएनवी), किशनगंज/कटिहार (2007-2014), बिहार, भारत. ईमेल- thenehalahmad@gmail.com Last Updated : 12th December, 2019.