जीवन में ठहराव और घूमने-फिरने दोनों के अपने-अपने मायने हैं। उन मायनों में दोनों का अपना-अपना महत्व है। अगर इंसान हमेशा एक जगह ही ठहरा रहे तो वह दूसरी जगहों के बारे में उस तरह से नहीं जान पाएगा जिस तरह का ज्ञान उसे किसी चीज़ को देखकर, छूकर या महसूस करके हो सकता है। तालाब में पानी ठहरा रहता है इसलिए गंदा भी हो जाता है। नदी में पानी कलकल करते बहती रहती है इसलिए उसके मुकाबले ठीक रहती है।
उर्दू के शेयर ख़्वाजा मीर दर्द ने क्या खूब कहा है कि "सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल जिंदगानी फिर कहां, जिंदगी गर रही तो यह जवानी फिर कहां" !
बड़ी दिलचस्प और कितनी सच्ची बात है मगर यहां एक बात ज़रा ठहर कर सोचिए तो आपको पता चलेगा कि कई बार हमारे पास जवानी होती है तो हमारे जेब में पैसे नहीं होते और जब तक पैसे आते हैं तब तक कई बार कईयों की जवानी जा चुकी होती है। यह सामंजस्य, यह समन्वय उम्र और जेब का कैसे स्थापित किया जाए ? इसका तालमेल कैसा हो, जिससे कि आप इस दुनिया के खूबसूरत रंगों को देख पाएंगे इस ओर भी तो सोचिये। जो है उसमें सन्तुष्ट होना बहुत अच्छी बात है। मगर अगर चादर थोड़ी बड़ी हो तो पैर फैला लेने में हर्ज तो होनी नहीं चाहिए। फ़ुज़ूल ख़र्च से बचना चाहिए और साथ ही कंजूसी भी नहीं करनी चाहिए। आप मेरी बात अच्छी तरह समझ रहे होंगे। यह मैं अच्छी तरह केवल उम्मीद कर सकता हूँ। दुनियां के कई हिस्से केवल घर की दीवार पर टँगे कैलेंडर में छपे होने के लिए नहीं है और न केवल वह आपके मोबाइल के होम पेज पर रखने के लिए हैं बल्कि घूमने एवं उसका असल आनंद लेने के लिए भी है।
दरअसल हर तरफ़ एक भागमभाग की स्थिति है। लोग मौजूदा वक़्त के लिए जीये भी जा रहे हैं मगर अगले सुखद पल के इंतज़ार के साथ। "आह ! ज़िंदगी" से "अहा ! ज़िंदगी" की तरफ़ आख़िर हम लोग कब बढ़ेंगे ? क्यों नहीं मौजूदा वक़्त में ही घूमने निकल जाएं। जी यकीनन मैं घर-बार बेच कर उधार लेकर घूमने की बात नहीं कह रहा हूँ। मैं उनकी बात कर रहा हूँ जो फुर्सत निकाल सकते हैं जो इन सब को आसानी से कर सकते हैं। कई ग़रीब लोग धार्मिक स्थलों की यात्रा करने के लिए पैसे जोड़ते हैं जिससे उन्हें वहां जाने का अनुभव प्राप्त हो।
यात्रा करना मेरा शौक है। यात्रा हमारे जीवन में नये अनुभव जोड़ती है। यात्राओं को एक शिक्षक के तौर पर भी देख सकते हैं, जो हमें एक बिल्कुल नई दुनिया से परिचित कराती हैं और चीज़ों को एक नये दृष्टिकोण से देखने का मौका देती है। पर्यटन, जिसे अक्सर आर्थिक विकास में योगदान से जोड़ कर देखा जाता है, शांति को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैश्विक स्तर पर, जहां दुनिया भर के देश परस्पर जुड़े हुए हैं और एक-दूसरे पर निर्भर हैं, पर्यटन, लोगों द्वारा और लोगों के लिए बनाया गया उद्योग है। पर्यटन का असल में विभिन्न संस्कृतियों के बारे में सीखने, विदेशी भाषाओं को सुनने, विदेशी स्वादों को चखने, अलग-अलग भाषा एवं संस्कृति के लोगों के साथ संवाद स्थापित करने और सहिष्णुता का निर्माण करने का एक बेहद खूबसूरत माध्यम है।
विश्व पर्यटन दिवस 2024 की थीम :-
विभिन्न वैश्विक मुद्दों पर पर्यटन के प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, संयुक्त राष्ट्र इस वर्ष विभिन्न संस्कृतियों को समझने और स्थायी पर्यटन प्रथाओं का अभ्यास करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए विश्व शांति पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसलिए विश्व पर्यटन दिवस 2024 की थीम रखी गयी है- ‘पर्यटन और शांति’ (Tourism and Peace)
पूर्वी यूरोप में स्थित यह देश बना है मेजबान :-
अक्तूबर 1997 में यूएन डब्ल्यूटीओ महासभा ने विश्व पर्यटन दिवस के उत्सव में संयुक्त राष्ट्र के भागीदार के रूप में कार्य करने के लिए प्रत्येक वर्ष एक मेजबान देश को नामित करने का फैसला किया था। तभी से हर वर्ष एक देश को मेजबान के तौर पर चुना जाता है। विश्व पर्यटन दिवस 2024 का मेजबान देश 'जॉर्जिया' है। यह पूर्वी यूरोप में स्थित एक खूबसूरत देश है। इस वर्ष विश्व पर्यटन दिवस 2024 का आधिकारिक सम्मेलन और कार्यक्रम 26 से 28 सितंबर तक जॉर्जिया की राजधानी त्बिलिसी में आयोजित किया जा रहा है।
विश्व पर्यटन दिवस का इतिहास :-
वर्ष 1980 से हर साल 27 सितंबर को विश्व पर्यटन दिवस मनाया जा रहा है। यह तारीख विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र पर्यटन कानून को अपनाने की सालगिरह का जश्न मनाने के लिए चुनी गयी थी। संयुक्त राष्ट्र पर्यटन कानून की संकल्पना 27 सितंबर, 1970 को की गयी थी। इन कानूनों को वैश्विक पर्यटन में एक मील का पत्थर माना जाता है। यह दिन उत्तरी गोलार्ध में उच्च मौसम के अंत और दक्षिणी गोलार्ध में मौसम की शुरुआत का भी प्रतीक है।
पर्यटन में 'गिरावट': सोशल मीडिया के दिखावे में रील्स से जान को खतरा :-
आजकल ये देखा जा सकता है कि सोशल मीडिया के लिए लोग बहुत उल्टी-सीधी हरकत करने लग जाते हैं जिससे या तो उन्हें थाने में जाना पड़ जाता है या वे लोग ज़िंदगी से ही हाथ धो बैठते हैं। पहाड़ों, नदियों, समुंदर के पानी, झरनों से खौफ़ नहीं खाते हैं लोग। ऐसे इंस्टाग्राम के रील्स की चंद लाइक्स की लालच में अपनी जान जोखिम में डाल देते हैं। हालांकि ये एक अच्छी बात है कि इन्हें ऐसी हरकत करने से आमतौर पर कमेंट में कोई इन्हें हीरो नहीं कह रहा होता है। लोग कमेंट में अपना गुस्सा ज़ाहिर करने आ जाते हैं। आमतौर पर कोई जल्दी इन्हें शाबाशी देता हुआ नहीं मिलता है। यह अलग बात है कि उस बदनामी में भी ऐसे रील्स बनाने वाले अपने हिस्से का नाम ढूंढ लेते हैं मगर हमारे समाज का यह निरर्थक अफ़सोस उस दिन प्रकट होता है जब किसी की लाश ढूंढे नहीं मिलती। हम ऐसी घटनाओं से सीख लेकर भी उन रील्स को कई बार अर्थ नहीं दे पाते। पानी, पहाड़, नदी, झरने, समुंदर में उठ रही लहरों से हम मज़ाक करना नहीं छोड़ते। कहीं ऐसा न हो कि हमें यह आदत कहीं का न छोड़े !
उपसंहार :-
उम्मीद करता हूँ कि अगर आप को कोई दिक्कत न हो तो आप कुछ दिनों के लिए अपनी जगह छोड़कर कहीं ऐसी जगह आप ज़रूर निकलेंगे जहां जाकर आप क़ुदरत के नज़ारे देख पाएंगे। आप देख पाएंगे कि दुनियां कितनी हसीन है। आप एक सही दिशा में अनुमान करने के लायक बढ़ेंगे और सोंचेंगे कि जब यह दुनियां इतनी खूबसूरत है तो दुनियां को बनाने वाला कितना खूबसूरत होगा ? और आप उसके खूबसूरती का तस्व्वुर भी नहीं कर सकते। क्योंकि आपने हमेशा 'Creation' की खूबसूरती को देखा है। Creator को नहीं देखा है। अर्थ यही निकल कर आता है कि जब यह दुनियां इतनी खूबसूरत है तो दुनियां को बनाने वाला कितना खूबसूरत होगा ?
- नेहाल अहमद
पीजीटी (हिंदी),
उच्च-माध्यमिक विद्यालय,
बेलवा-काशीपुर, किशनगंज(बिहार)
भूतपूर्व छात्र: JNV, AMU और MANUU
Youtube Channel: 'Nehal Ahmad Official'
thenehalahmad@gmail.com
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