Tuesday, November 24, 2020

ग्राऊंड रिपोर्ट : पढ़िए ‘ओवैसी’ की जीत पर अब क्या कह रहे हैं सीमांचल वाले !

November 25, 2020

नेहाल अहमद । Twocircles.net

बिहार के सीमांचल में ओवैसी ने कुल 5 सीट जीते और यकीनन ऐसा माना जा रहा है कि बिहार में महागठबंधन की हार की चर्चा से ज़्यादा ओवैसी की जीत की चर्चा हो रही है। इस दौरान ओवैसी का सियासी कद बढ़ा है इससे कोई इंकार नहीं लेकिन क्या उनका बढ़ता सियासी कद मुसलमानों के लिए फायदेमंद होगा भी या नहीं ! उनके सियासी कद को लेकर मुसलमान उन्हें क्या समझते हैं ? वोट कटवा ? मुसलमान की आवाज़ ? मिरर इमेज ऑफ हिन्दू राइट विंग या अन्य ? अगर कुछ और तो क्या ? और जो भी समझते हैं तो क्यों ? क्या कारण है ?

Twocircles.net के सीमांचल बिहार के हमारे संवाददाता ने सीमांचल में ओवैसी के 5 सीट जीतने एवं बिहार में सरकार (महागठबंधन) न बनने पर ओवैसी को लेकर हमने ये जानने की कोशिश की कि आखिर स्थानीय लोगों की इस पर क्या प्रतिक्रिया है और ओवैसी एवं उनकी राजनीति को सीमांचल बिहार के मुसलमान अपने लिए किस तरह देखते हैं !

किशनगंज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र निवासी सह पीएफआई जिलाध्यक्ष सादिक़ अख़्तर ओवैसी की राजनीति का विरोध करते हैं वो कहते हैं कि यह ओवैसी की जीत नहीं है बल्कि बदलाव एवं महागठबंधन की हवा के मध्य मिले वोट के फायदे का नतीजा है। यह ओवैसी फैक्टर नहीं है। लोग बदलाव एवं महागठबंधन चाहते थे उसी में AIMIM ने बाजी मारी है। वो खुद की वजह से नहीं जीती है। बिहार विधानसभा चुनाव की AIMIM की तैयारियों को लेकर एक बड़ी बात वो कहते हैं कि AIMIM की सारी टीम का रुझान अमौर से अख्तरूल ईमान को जिताने में चला गया था और अन्य जगहों से ध्यान उठने लगा। जो तवज्जो हर जगह दी जानी थी वो केवल अमौर में ज़्यादा झोंक दी गई। अगर हर जगह ध्यान दिया होता तो किशनगंज विधानसभा से उपचुनाव में जीते सिटिंग विधायक कमरुल होदा क्यों हारते !  उनकी हार के लिए पार्टी की रणनीति ज़िम्मेदार है। ऐसी रणनीति ठीक नहीं । ओवैसी साहब अगर मुसलमानों का इतना ही हित चाहते हैं तो एसडीपीआई (SDPI) से गठबंधन क्यों नहीं करते ! उन्होंने एसडीपीआई से गठबंधन क्यों नहीं किया ! सादिक सवाल करते हैं कि ‘ओवैसी’ की विचारधारा कहां गई जब मालेगांव में नगर निकाय के चुनाव में उन्होंने शिव सेना के साथ गठबंधन किया। ओवैसी ने तेलंगाना में उस केसीआर (KCR) के साथ गठबंधन किया जिस केसीआर ने ‘तीन तलाक’, बाबरी मस्जिद विवाद, धारा 370 हटने और सीएए-एनआरसी का समर्थन किया था। ओवैसी असम में मौलाना बदरुद्दीन अजमल के ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के साथ क्यों नहीं मिल जाते ?

कांग्रेस-राजद-बसपा की तरह वन मैन शो की तरह क्यों रहते हैं ? अगर ओवैसी मुसलमानों के इतने बड़े हितकारी हैं तो जहां उनके विधायक नहीं हैं, वहां सरकार नहीं है, वहां जाकर सेवा स्वरूप लोगों को बुनियादी सुविधाएं मुहैया क्यों नहीं कराते ? वहां काम क्यों नहीं करते ?

कटिहार ज़िंले के प्राणपुर विधानसभा क्षेत्र निवासी मोहम्मद नजमुस साक़ीब  (वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ में कैबिनेट के पद पर भी रह चुके हैं)  कहते हैं कि इस वक्त मुल्क यकीनन बहुत ही बुरे दौर से गुजर रहा है। हालात बहुत ही बुरे हैं लेकिन साथ ही साथ हमें यह भी देखना होगा कि बिहार का एक क्षेत्र जिसको सीमांचल कहा जाता है यहां पर लोग कितनी परेशानी का सामना करते हैं और किन बुनियादी सुविधाओं के भारी अभाव के कारण कई प्रकार के अवसरों से वंचित रहते हैं। हम लोगों ने देखा है कि 74 सालों से पूरे सीमांचल में नाम नेहाद सेकुलर पार्टियों ने वोट लिया लेकिन इस वोट के नाम पर इस क्षेत्र को लूटा गया है यानी जो नेता बने और जिन को चुनकर भेजा गया, उन्होंने सिर्फ और सिर्फ अपनी तरक्की की। क्षेत्र के लोगों को और उनकी परेशानियों को भूल गए।

इस बार एआईएमआईएम को पांच विधायक मिलने का संदेश साफ़ है कि सीमांचल की जनता अल्टरनेट ऑप्शन चुन रही है और चुनना चाहती है। उन्हें लगता है कि यह इस क्षेत्र के लंबित मुद्दों का समाधान कर सकती है। जैसे ग़रीबी, बेरोज़गारी, बाढ़, मजदूरों का पलायन, शिक्षा का बुरा स्तर इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण समस्याओं में से है। अब यहां के लोगों की उम्मीदें है कि यह पार्टी क्षेत्र के लंबित मुद्दों का समाधान निकालेगी।

कोचाधामन विधानसभा निवासी  एएमयू अलीगढ़ छात्र नेता मोहम्मद अफ़्फ़ान यज़दानी कहते हैं कि सीमांचल में ओवैसी की जीत केवल मुसलमानों के प्रयोग की है उसके अंतिम निर्णय की नहीं। इससे पहले तकरीबन 70 सालों तक मुसलमानों ने नाम निहाद सेक्युलर पार्टियों का साथ दिया और सबको सत्ता की बुलंदी तक पहुंचाने में नौजवानों ने अपनी जवानी कुर्बान कर दी। क़ौम के बुजुर्गों ने अपनी ज़िंदगी वक़्फ़ कर दी लेकिन मुसलमानों को क्या मिला !  दंगा मिला ,बाबरी मस्जिद का सानेहा मिला ,मॉब लींचिंग के नाम पर क़त्ल किया गया, जलता हुआ गुजरात मिला और हाल ही में दिल्ली में एक ‘सेक्युलर’ सरकार बनी जिसमें मुसलमानों ने झोली भर-भर कर वोट दिया लेकिन जब जामिया और दिल्ली को दंगाइयों के ज़रिये जलाया जा रहा था तब उस सरकार के चेहरे से सेक्युलरिज़्म का मुखौटा हट गया जो फ़र्जी साबित हुआ और इसी के साथ केजरीवाल सबके सामने बेनकाब हो गए। तब्लीगी जमाअत को लेकर भी केजरीवाल का रवैया निराशाजनक रहा। तमाम सेक्युलर नेताओं को यह सब मालूम है लेकिन फिर भी मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूं जो आज मीम पर सवाल उठा रहे है कि ऐसी कौन सी हिक्मत बाकी है जिसपर मुसलमानों ने अब तक अम्ल नहीं किया है !

अफ्फान कहते हैं “क्या आपको नहीं लगता कि जब तमाम नाम नीहाद सेक्युलर पार्टियों ने मुसलमानों को धोखा दिया तब इस ‘लाचार’ क़ौम के मासूम आवामों ने असद्दुदीन ओवैसी का दामन थामने की कोशिश किया है और इसे हालिया राजनीति में आख़री उम्मीद की तरह देखने की कोशिश कर रहे हैं। ओवैसी के उभरने की वजह से नाम निहाद सेक्युलर पार्टी का चरित्र खुल कर सामने आया है। अब उन्हें भी लगता है कि मुसलमानों का वोट उनसे पास ठहरने वाला नहीं इसलिए वो भी मुसलमान की ख़ास ज़रूरत महसूस नहीं कर रहे”।

बहादुरगंज विधानसभा क्षेत्र जहां 2005 से लगातार कांग्रेस के विधायक थे और अब इस बार AIMIM ने वहां जीत हासिल कर कांग्रेस को उखाड़ फेंका है। यहां के निवासी मोहम्मद नौमिर आलम कहते हैं कि “सांसद  AIMIM प्रमुख असद्दुदीन ओवैसी हमेशा भारत के धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के साथ खड़े रहे हैं, उन्होंने केवल मुसलमानों के हक की बात नहीं बल्कि कई प्रकार के अल्पसंख्यकों की बात की है। उन्होंने हर राजनीतिक कदम भारत के संविधान को ध्यान में रखते हुए उठाया है। बिहार चुनाव में ओवैसी की पार्टी की 5 सीटों पर जीत मुस्लिम बहुल इलाके में उनकी विश्वसनीयता की वजह से हूई। कांग्रेस ने ख़ास कर मुस्लिम बहुल इलाके में अपनी पकड़ और विश्वास खो दिया है। यह ओवैसी की जीत का एक कारण रही वहीं दूसरी ओर एक कारण बदलाव भी रहा। यहां के लोग बदलाव चाहते थे। यहां वर्षों से कांग्रेस पार्टी रही लेकिन कांग्रेस ने कुछ ख़ास विकास नहीं किया। इसका यह मतलब नहीं कि महागठबंधन बिहार में कभी जीत ही नहीं सकता। यह तो लोगों ने विचार पर निर्भर करता है। मैं व्यक्तिगत रूप से यह समझता हूँ कि हिन्दू अपने आप को AIMIM की रैली, भाषणों एवं कार्यक्रमों की वजह से इकट्ठा होकर बीजेपी को वोट करते हैं । हिन्दू समुदाय का एक बड़ा वर्ग यह सोंचता है कि ओवैसी के भाषण एवं उनकी आवाज़ केवल मुसलमानों के लिए उठती है जो कि हिंदुत्व के विचारधारा के प्रसार और अज्ञानता की वजह से बिल्कुल ग़लत है। मैं यह नहीं मानता कि ओवैसी की वजह से महागठबंधन की हार हूई है। अपने गिरेबान में कांग्रेस को झाँकने की ज़रूरत है”।

बहादुरगंज विधानसभा के ही एक युवा रेहान रज़ा कहते हैं ” ओवैसी भले ही सीधे तौर पर बीजेपी के बी टीम हों या न हों लेकिन उनके बयानों का एक ख़ास फ़र्क हिन्दू समाज एवं उस समाज के वोटरों पर बहुत पड़ता है जो बीजेपी की तरफ़ इकट्ठा होने में योगदान देता है। साथ ही अपनी बात में जोड़ते हुए वो कहते हैं कि जहां छोटी-छोटी बात एवं निराधार तरीके से छात्रों एवं बीजेपी का विरोध कर रहे लोगों पर UAPA लग रहा है वहीं ऐसा क्या है कि ओवैसी व उसकी टीम के लोगों को कुछ नहीं होता है। दरअसल यह इसलिए नहीं होता है क्योंकि बीजेपी का काम जो बाकी रह जाता है उसे ओवैसी और उसकी पार्टी परोक्ष रूप से ही सही पूरा कर देती है। रेहान AIMIM की रैली में कुछ ऐसे नारों के लगाने को भी ठीक नहीं मानते। कारण उपर्युक्त है कि बीजेपी को इससे फायदा होता है।"

(यह ग्राउंड रिपोर्ट 23 नवम्बर 2020 को TwoCircles.net में प्रकाशित हुआ जो सीमांचल बिहार के निवासी सह TwoCircles.net के ट्रेनी पत्रकार नेहाल अहमद द्वारा लिखा गया था)

Saturday, November 21, 2020

आपत्तिजनक एनपीआर हुआ तो फिर से करेंगे विरोध : ओवैसी

November 20, 2020

नेहाल अहमद । Twocircles.net

हैदराबाद से सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि अगर देश में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) बनाने का शेड्यूल तय हो चुका है तो जल्द ही इसके विरोध का भी शेड्यूल फाइनल किया जाएगा।  उन्होंने कहा है कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (NRC) का पहला चरण नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (NPR) है। ट्विटर पर एक खबर का लिंक शेयर करते हुए ओवैसी ने लिखा, “एनपीआर एनआरसी की ओर पहला कदम है।भारत के गरीबों को इस प्रक्रिया में मजबूर नहीं किया जाना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप उन्हें ‘संदिग्ध नागरिक’ के रूप में चिह्नित किया जा सकता है। यदि एनपीआर के काम के शेड्यूल को अंतिम रूप दिया जा रहा है, तो इसका विरोध करने के लिए कार्यक्रम को भी अंतिम रूप दिया जाएगा।”

ओवैसी की यह प्रतिक्रिया ‘द हिन्दू’ के उस खबर के बाद आई है, जिसमें कहा गया था कि देश के रजिस्ट्रार के दफ्तर में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) के लिए प्रश्नावली या कार्यक्रम को फाइनल रूप दिया जा रहा है लेकिन 2021 के पहले चरण की जनगणना की संभावित तारीख अभी सामने नहीं आ सकी है।

बताते चलें कि 13 से अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने NPR को प्रस्तावित नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन (NRC) और हालिया नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) के साथ लिंक करने का विरोध किया है. 2003 में बनाए गए नागरिकता नियमों के अनुसार, एनपीआर भारतीय नागरिक रजिस्टर (NRIC) या NRC के संकलन की दिशा में पहला कदम है।

एनपीआर का डेटा कलेक्शन पहली बार 2010 में किया गया था और उसे 2015 में अपडेट किया गया था।  पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे कुछ राज्यों ने नए एनपीआर में पूछे जाने वाले अतिरिक्त प्रश्नों पर आपत्ति जताई है, जैसे “पिता और माता का जन्म स्थान, निवास स्थान और मातृभाषा” जैसे सवालों पर आपत्ति जताई गई है।

 ग़ौरतलब है  कि 11 दिसंबर, 2019 को संसद द्वारा पारित CAA पाकिस्तान, अफगानिस्तान से छह समुदायों को धर्म के आधार पर विशेष रूप से मुसलमान को छोड़ कर नागरिकता की अनुमति देता है जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बंग्लादेश से 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ चुके हैं। ऐसी आशंकाएँ है कि CAA, उसके बाद देशव्यापी NRC से भारत के मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी जबकि ग़ैर-मुस्लिमों को आसानी से CAA के ज़रिये नागरिकता मिल जाएगी। हालांकि बुद्धिजीवियों का बड़ा वर्ग इस कानून को ग़रीब विरोधी बताता रहा है और कहा है कि यह भारत के संविधान के लिए बड़ा ख़तरा है। उसके धर्मनिरपेक्षता पर इससे दरार आएगी। सरकार ने कहा है कि NRC और CAA का कोई संबंध नहीं है लेकिन उसके बयानों में अंतर्द्वंद्व और पिछले कुछ सालों में उसके उठते कदमों से जनता में शंका पैदा हुई है जो जनता के बड़े वर्ग और सरकार के बीच के विश्वास को पूरी तरह के तोड़ चुका है।

बता दें कि  पिछले वर्ष 2019 में नागरिकता संशोधन कानून के पारित होते ही देश-दुनियाभर में भारत में मुसलमानों की नागरिकता के उठते सवाल एवं देश की धर्मनिरपेक्षता और संविधान पर हमले को लेकर विरोध प्रदर्शनों की झरी सी लग गई थी। जामियां मिल्लिया इस्लामिया(JMI) और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी(AMU) में 15 दिसम्बर 2019 को हुए छात्र-छात्राओं पर पुलिस बल के हुए निर्मम प्रयोग ने लोगों को आक्रोशित कर सड़क पर आने को मजबूर कर दिया था।

लोकसभा में 9 दिसम्बर 2019 को नागरिकता संशोधन बिल (CAB) का विरोध करते असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि ” इस बिल की मैं मुख़ालफ़त करता हूँ, यह हिंदुस्तान के संविधान के ख़िलाफ़ है और ये उन लोगों की तौहीन है जिन्होंने इस मुल्क को आज़ाद करवाया था, सन 57 की जंगआज़ादी हो, या 1910 में , महात्मा गांधी कैसे महात्मा बने मालूम मैडम ? (स्पीकर की तरफ़ कहते हुए) उन्होंने साउथ अफ्रीका के नेशनल रजिस्टर कार्ड को फाड़ दिया था, जला दिया था। इसीलिए जब महात्मा ने फाड़ा, मैं इस बिल को फाड़ता हूँ। ये हिंदुस्तान को तोड़ने की कोशिश कर रहा है।’

Credit : यह ख़बर 20 नवम्बर 2020 को  TwoCircles.net में प्रकाशित हूई। Intern Journalist

Tuesday, November 10, 2020

बिहार चुनाव परिणाम 2020 : ओवैसी की पार्टी का सीमांचल में जलवा , पांच जीते

बिहार चुनाव परिणाम 2020 : ओवैसी की पार्टी का सीमांचल में जलवा , पांच जीते

November 10, 2020
सीमांचल से नेहाल अहमद । TwoCircles.net 

कांटे की टक्कर के साथ बिहार विधानसभा चुनाव-2020 परिणाम के बीच असदुद्दीन ओवैसी नेतृत्व वाली एआईएमआईएम ने दमदार एंट्री की है। ।मजलिस के पांच प्रत्याशियों ने चुनाव जीत लिया है। इसके औपचारिक घोषणा होना बाकी है मगर यह तय हो गया है।

आज का दिन ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तिहादुल मुस्लमीन (AIMIM) और इसके मुखिया बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी के लिए बेहद ख़ास बन गया है। वो 24 सीटों पर चुनाव लड़ रहे थे।

उनको यह कामयाबी बिहार सीमांचल इलाके में मिली है। यह इलाका मुस्लिम बहुल हैं। लोकसभा क्षेत्र(10) में कुल 6 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं जिसमें अमौर(56) और बायसी(57) पूर्णिया ज़िले में पड़ता है।


किशनगंज के बहादुरगंज विधानसभा (52) से मजलिस के उम्मीदवार मोहम्मद अंज़ार नईमी (40,071 वोट) ने सीधी टक्कर में एनडीए की वीआईपी से उम्मीदवार लखन लाल पंडित(26,422 वोट) को 13,649 वोट से हरा दिया गया है। वर्ष 2005 से लगातार  स्थानीय कांग्रेस विधायक मोहम्मद तौसिफ आलम (सिटिंग) को बेहद कम वोट आया है। बहादुरगंज की जनता बदलाव की बात कर रही थी जिसमें अक्सर लोग कामयाब रहे।


कोचाधामन विधानसभा(55) से AIMIM उम्मीदवार मोहम्मद इज़हार असफी( 52,380 वोट) ने सिटिंग विधायक मास्टर मुजाहिद आलम जदयू/एनडीए (24,838 वोट) को बारी अंतर 27,542 वोट से हराया है। कई वजहों में महत्वपूर्ण वजह पार्टी की भी है। पार्टी की वजह से मुजाहिद साहब को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।


हालांकि  किशनगंज विधानसभा(54) से उपचुनाव में जीते सिटिंग विधायक  कमरुल होदा (17,989 वोट) को कांग्रेस के इज़हरुल हुसैन  (36,000+ वोट) ने 19,000+ वोटों के अंतर से हराया है। किशनगंज के किशनगंज विधानसभा से ये मजलिस के लिए निराश करने वाली ख़बर है।




पूर्णिया ज़िले में किशनगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र अमौर विधानसभा(56) से मजलिस के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान(51,925 वोट) ने जदयू एनडीए के सबा ज़फर(23,301 वोट) को कुल 28,624 वोटों के अंतर से हराया है।


पूर्णिया ज़िले में ही किशनगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के बाइसी विधानसभा(57) से सय्यद रुकनुद्दीन अहमद (50,673 वोट) ने बीजेपी के विनोद कुमार(46,352 वोट) को सीधी टक्कर में 4,321 वोटों के अंतर से हराया है।

सीमांचल के अररिया ज़िले में स्थित जोकीहाट विधानसभा(50) में AIMIM के मोहम्मद शाहनवाज़ (59,523 वोट) ने राजद की टिकट से अपने भाई सरफ़राज़ आलम(51,980 वोट) को कुल 7,543 वोटों के अंतर से हराया है।

 सीमांचल वो इलाका है जो नेपाल और मगरिबी बंगाल की सरहद से लगता हुआ शुमाल मशरिक (पूर्वोत्तर) भारत से जुड़ता है, सियासी समीकरण के लिहाज से ये इसलिये अहम है क्योंकि यहां के चार जिलों पूर्णियां में 35 फीसदी, कटिहार में 45 फीसदी, अररिया में 51 फीसदी और किशनगंज में 70 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं.

इस  चुनाव परिणाम के बाद कांटे की टक्कर के बीच  सीमांचल ही नहीं बल्कि पूरे बिहार में ओवैसी के कद को बढ़ गया है और सरकार के गठजोड़ में अब उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। जिससे किसी को भी इंकार कर पाना मुश्किल होगा।

Published in TwoCircles.net || November 10, 2020 । 


Sunday, November 8, 2020

एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज में होगा 'कोवासीन' के तीसरे चरण का परीक्षण

November 8, 2020

नेहाल अहमद | TwoCircles.net

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईएमआरसी) नई दिल्ली ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी मेडिकल कॉलेज (जेएनएमसी) को कोरोना वायरस वैक्सीन के परीक्षण कार्यक्रम में शामिल कर लिया गया है।

एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज में भारत बायोटेक (हैदराबाद) द्वारा निर्मित कोरोना वायरस के टीके ‘कोवासीन’ का परीक्षण 14 नवम्बर से शुरू किया जाएगा। इसके लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने सभी आयु वर्ग- सामाजिक पृष्ठभूमि के लोगों से परीक्षण में शामिल होने की अपील की है। एक हज़ार वोलियंटर्स को पंजीकरण के लिए आमंत्रित किया गया है।

आईएमआरसी और भारत बायोटेक के सहयोग से होने वाली इस परीक्षण हेतु पंजीकरण की शुरूआत आगामी 10 नवम्बर से की जा रही है जो एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल (जेएनएमसीएच) के ओल्ड ओपीडी ब्लॉक हॉल में सुबह 9 बजे से दोपहर 2 बजे तक होगी। इस पंजीकरण एवं इससे जुड़े पहलुओं के जानकारी की पूछताछ के लिए एएमयू ने एक मोबाइल नम्बर 7455021652 भी जारी किया है जिस पर इच्छुक लोग संपर्क कर के इस संबंध में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस टीके का ट्रायल जनवरी के अंत तक चलेगा।

क्लीनिकल परीक्षण के आयोजन के लिए डॉक्टरों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और अधिवक्ताओ पर आधारित एक  ‘नैतिकता समिति’ का गठन कर लिया गया है। मनुष्यों में इस टीके के परीक्षण के दौरान, पहले चरण में, एंटीबॉडी के उत्पादन का परीक्षण किया जाएगा जिसकी शुरुआत उपर्युक्त लिखित दिनांक 14 नवम्बर से होगी। बाद के चरण में ये देखा जाएगा कि यह टीका लोगों को बीमार होने से बचाता है या नहीं। इस परीक्षण से यह भी पता चलेगा कि टीका प्रभावी और सुरक्षित है। ट्रायल में भाग लेने वाले वोलियंटर्स को वैक्सीन के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान की जाएगी।

इस संबंध में वाइस चांसलर प्रो. तारिक़ मंसूर ने ट्वीट कर कहा कि ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के राष्ट्र सेवा एवं मानव कल्याण से समृद्ध इतिहास को जारी रखते हुए एएमयू जेएन मेडिकल कॉलेज में कोविड-19 वैक्सीन के ट्रायल की ख़बर की घोषणा करते हम लोगों को गर्व हो रहा है कि आईसीएमआर के स्वीकृति के बाद हैदराबाद के ‘भारत बॉयोटेक’ के सहयोग से एएमयू में कोविड-19 वैक्सीन ‘कोवासीन’ का ट्रायल हो रहा है। एएमयू इस ट्रायल और अध्ययन के माध्यम से इस मामले में पहले से बेहतर शोध कर बेहतर बचावों एवं इलाज को विकसित कर सकेगा।कोविड वैक्सीन ‘कोवासीन’ का ट्रायल कर रहा एएमयू उत्तर प्रदेश का तीसरा केंद्र है जो इस ट्रायल का तीसरे चरण को संचालित कर रहा है। ‘एएमयू’ कोविड वैक्सीन पर परीक्षण कराने वाला शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत प्रथम विश्वविद्यालय में से एक है। हम अपने सभी साथी नागरिकों को वहनीय टीका उपलब्ध कराने के सामूहिक प्रयासों में अपना योगदान देने के लिए प्रयास कर रहे हैं।’

एएमयू वाइस चांसलर प्रो.तारिक मंसूर एवं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जनसंपर्क कार्यालय के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से भी समय-समय पर इससे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां साझा की जा रही है।

एएमयू जे एन मेडिकल कॉलेज के रेसिडेंट डॉक्टर और सामाजिक संस्था ‘सोच’ के अध्यक्ष डॉ. सलीम मोहम्मद खान ने twocircles.net से कहा कि  ” एएमयू का हमेशा से राष्ट्रनिर्माण में एक अहम भूमिका है। एक तरफ़ जहां कोविड के बुरे दौड़ ने एक अहम भूमिका निभाई वहीं  दूसरी ओर अब एएमयू में कोरोनावायर्स के टीके का ट्रायल यहां के लिए एक बड़ी बात है और साथ ही बड़ी उपलब्धि है। तमाम डॉक्टर्स, स्वास्थ्यकर्मी एवं अलीग बरादरी को बधाई के हकदार है।  उम्मीद यह है कि कि यह ट्रायल हमें एक अच्छे नतीजे पर ले चलेगा और मजाज़ के तराने की पंक्ति ‘जो अब्र यहां से उठेगा वो सारे जहां पर बरसेगा’ को देश-दुनियां में चरितार्थ करेगा “।’

ज़ाहिर है कि कई विवादित एवं झूठे मनगढ़ंत मुद्दों में एएमयू को सुर्खियों में रख बदनाम करने की साजिश रचने वाले मीडिया के एक बड़े वर्ग को चाहिए कि वो एएमयू के इन योगदान पर नज़र दोहराये तो कई बातें पता चलेगी।

ज्ञातव्य हो कि कोविड-19 के बुरे दौर में यूपी में कोरोना टेस्ट सेंटर केवल (3) थे।  जिसमें एएमयू का मेडिकल उनमें से एक है। कोरोना को लेकर पीएम केयर फंड में सबसे ज़्यादा रुपये का राष्ट्र सेवा में (1.33 करोड़) रुपये भेजने वाली यूनिवर्सिटी में एएमयू का पहला स्थान है और कोविड-19 रोगियों के उपचार के लिए अगस्त 2020 से जेएन मेडिकल कॉलेज में प्लाज़मा थेरेपी भी की जा रही है।

(यह ख़बर 8 नवम्बर 2020 को TwoCircles.net में प्रकाशित हूई) 

Wednesday, November 4, 2020

बिहार चुनाव ग्राउंड रिपोर्ट : सीमांचल के कोचाधामन विधानसभा में यह है जनता की मन की बात !

November 5, 2020

नेहाल अहमद ।Twocircles.net

किशनगंज लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र(10) में पड़ने वाले कोचाधामन विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र (55) में विधानसभा चुनाव की वोटिंग 7 नवम्बर को है।यहां  मुख्य उम्मीदवारों की बात करें तो जेडीयू (एनडीए) के सिटिंग विधायक मास्टर मुजाहिद आलम मैदान में हैं वहीं दूसरी ओर एआईएमआईएम के इज़हार अशफ़ी हैं। वहीं राजद के उम्मीदवार शाहिद आलम हैं। यहां त्रिकोणीय मुकाबले की बात चल रही है।

बिहार चुनाव के ग्राउंड रिपोर्ट की कड़ी में सीमांचल किशनगंज से हमारे सीमांचल संवाददाता ने रविवार चकला घाट स्थित जहांगीर चौक पर स्थानीय लोगों से बात कर उनके मन को टटोलने की कोशिश की और जाना की आखिर उनके मुद्दे उनकी समस्याएं क्या हैं !

19 साल के करीम ने कहा कि शिक्षा एक अहम मुद्दा  है। मैं ग्रेज्युएशन में हूँ। देखना ये होगा कि अब सत्र में हो रहे सुधार के दावे की ज़मीनी हकीकत क्या है (क्योंकि यहाँ के कॉलेज पहले बीएन मंडल यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए थे लेकिन अब पूर्णिया यूनिवर्सिटी से जुड़ जाने पर सत्र के नियमित होने की बात चल रही है)

मोहम्मद नूर हुसैन कहते हैं कि वो ओवैसी की राजनीति से प्रभावित हैं। शिक्षा के लिए बच्चों को दूसरे शहरों में पलायन करना पड़ता है जिसके लिए सरकार ज़िम्मेदार है। एनआरसी को लेकर चले आंदोलन में जदयू के रुख़ का सीधा नकारात्मक असर वर्तमान में विधायक रहे मुजाहिद आलम के वोट पर पड़ सकता है।

मोहम्मद इस्लाम कहते हैं कि इस बार जदयू ने जो वायदे किये थे वो इस बार पूरे नहीं हुए। इसलिए इस बार एआईएमआईएम को वोट दूंगा। राजनीति दलों के आरोप-प्रत्यारोप का ज़्यादा असर नहीं पड़ता। ओवैसी के यहां आने से विकास संभव है।

मोहम्मद सफ़ुर कहते हैं कि ‘पिछला’ पंचायत में हाई स्कूल में मास्टर, हेड मास्टर का कोई अता-पता नहीं है। बाढ़ को लेकर खासी समस्याओं का  सामना करना पड़ता है। यहां से सिटिंग विधायक मास्टर मुजाहिद आलम अच्छे हैं लेकिन उनकी पार्टी (जदयू-एनडीए) ठीक नहीं। उनकी पार्टी को लेकर आक्रोश व्याप्त है जिसका खामयाजा उन्हें भुगतना पड़ सकता है।

नजमुल हक़ कहते हैं कि शिक्षा एवं बुनियादी सुविधाओं का यहां अभाव है। जिस सरकारी विद्यालयों में केवल तीन मास्टर हो, प्रत्येक क्लास में सैकड़ो विद्यार्थी हों, वहां कक्षा के संचालन एवं शिक्षा का स्तर क्या होगा ये अनुमान लगाया जा सकता है। साइकिल वितरण के वक्त मैं वर्तमान विधायक से कहा था कि कक्षा के संचालन एवं शिक्षा की गुणवत्ता की जाँच हो। राशन वितरण के मामले में  5 किलो फ्री में देता है और 5 किलो के पैसे लेता है लेकिन तौल के देख लीजिये कि 10 किलो में 3 किलो की कटौती क्यों करता है ?

कैमरे देख अपने नेत्रहीन बेटे अनाबुल को लिए माँ अनवरी आ गई। इन्हें लगता है कि कैमरे पर बोल देने से शायद इनकी समस्या हल हो जाएगी तभी शायद बोलने से पीछे नहीं हठतीं। निराशावादी आशा सरकार से कहीं देखना हो तो इन्हीं तबकों में देखिये। गजब का विरोधाभास मिलेगा। अनवरी अपने नेत्रहीन बेटे अनाबुल के बारे कहती हैं कि इसके इलाज के लिए विराटनगर (नेपाल) गए थे लेकिन फ़ायदा कुछ नहीं हो सका। ‘हफ़्ता वाला’ लोन दे रहा है जिसके माध्यम से 10 हज़ार का लोन लेकर बाढ़ जैसी आपदा में क्षतिग्रस्त घर की मरम्मत कर डाली जो ज़रूरी था। घर में ट्यूबवेल नहीं है। पानी दूर से बोतल, बाल्टी में भर कर घर लाना पड़ता है। एक नेता के यहां 2 घण्टे बैठे रहे कोई सहायता नहीं मिल सकी । चाय पिला कर हटा दिया।

ठेला चलाने वाले मोहम्मद शाहिद आलम ने बताया कि नीतीश ने जुमलेबाजी का काम किया है। गली का दरकार जहां से वहां न देकर वहां दिया गया है जहां इसकी दरकार नहीं है। गली-नाली के सही निर्माण न होने के कारण बाढ़ के वक्त उसका पानी जमा हो जाता है जिससे पानी हटने में बाधा उतपन्न हो जाती है। मोदी-नीतीश के दावे फेल हैं।  योजनाओं का लाभ ज़मीनी स्तर पर नहीं मिलता है। मैं ठेला चलाकर खाता-पीता हूँ। आगे कहते हैं कि लालू के समय में भैंस लोन ग़रीब को 5 हज़ार रुपये देता था जो उस वक्त के हिसाब से बहुत था लेकिन अभी के ज़माने में तो 50 हज़ार भी कम पड़ेगा। उस वक़्त लालू सबको अपना रोज़गार चलाने के लिए लोन दे रहा था लेकिन अभी लोन उसी को दे रहा है जिसकी ज़मीन है, जिसकी ज़मीन नहीं उसको लोन नहीं।

बुजुर्ग ताहिर कहते हैं कि बाढ़ के वक़्त केरला से लाभ मिला था। मुखिया-मेम्बर से कोई सपोर्ट नहीं है। बरसात में चावल डाल दिया है। दो-चार सौ टका(रुपये) भी दिया है। काम-धंधा अभी बंद है। इन समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है।

ख़तिबुद्दीन कहते हैं कि वार्ड नम्बर तीन, चकला पंचायत में ‘सबसे पहले’ बाढ़ आता है और जाता सबसे बाद में मेरे आंगन से है। वर्ष 2017 में 6 हज़ार की सहायता मिली थी । उसके बाद दो-तीन साल से बाढ़ का पानी झेल रहे हैं लेकिन अभी तक एक भी पैसा नहीं मिला है। लोकडाउन में बीजेपी ने स्कूलों में पढ़ाई बर्बाद कर दिया। अब हम ओवैसी को यहां मौका देंगे।

यहीं  टोटो (ई-रिक्शा) चालक मोहम्मद रफ़ीक गुज़रते मिले। उन्होंने कहा कि यहां बाढ़ की बड़ी समस्या बनी रहती है जिस कारण उस वक्त खाने-पीने की बड़ी समस्या हो जाती है। यहां रोजगार के अवसरों पर अगर ध्यान दिया जाये तो रोजगार के पलायन को रोका जा सकता है क्योंकि अगर घर के पास ही लोगों को रोजगार मिल जाएगा तो कोई फिर क्यों बाहर जाएगा।

Credit : Twocircles.net November 3, 2020 

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