एक झूठ को अगर बार-बार नियमित रूप से अगर प्रोपैगैंडा के लिए तैयार किया जाए तो वह सच लगने लगता है और जब हमारा समाज हर ख़बर को फिर से जाँच करने वाला न हो, फारवर्ड करने वाला हो तो प्रोपैगैंडा का काम और आसान हो जाता है। यह प्रोपैगैंडा कोरोनावायरस के दौर में तबलीगी जमाकर्ताओं के ख़िलाफ़ देखने को मिलती रही है जिसे समाज का एक तबका दिन-रात ख़बरों में देखता वही को सच मानने लगा और अफ़्मीर में अब जाकर कोर्ट ने कहा है कि वह प्रोपैगैंडा था।
कोरोनावायरस के पत्रों के दौर में लोकडाउन में जहाँ हज़ारों की तादाद में बड़े शहरों में एफ ने प्रवासी मजदूर अपने गाँव के लिए शहरों से वापसी के लिए पैदल ही घर को कूच कर रहे थे वहीं हमारा मीडिया क्या कर रहा था? हमें सोचने की आदत है लेकिन अगर हम याद करते हैं तो हमें याद करेंगे कि किस तरह के दौर में वे दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज़ के तब्लीगी जमाकर्ताओं को मोहरा बना रहे थे। जो कई हफ़्तों तक ख़बरों में चलता रहा है। सत्ता के साथ मेलजोल का खेल मीडिया का भले ही पूरी तरह से नया हो लेकिन यह नफ़रत तो नई लगती है। जहाँ कई देश कोरोनावायरस से निजात के लिए दवाई खोजने में लगे थे, वहीं हमारा मीडिया जमाकर्ताओं को खोज रहा था। यह अलग बात है कि वे जमाती छिपे हुए नहीं थे। जमाकर्ताओं को लेकर मीडिया उनके 'छिपे' होने और दूसरे समुदाय के लोगों के 'फंसे' होने की बात करता था। वह मुसलमानों को एक अपराधी की नज़र से देख रहा था या यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि आपको वो 'चश्मे' दे रहा था जिसे पहन कर मुसलमान को देखा जाए तो वह अपराधी नज़र आये। झूठी ख़बरों का सिलसिला एक के बाद एक जारी रहा। कई शहरों की स्थानीय पुलिस ने सैटेलाइट पर बड़े-बड़े मीडिया चैनलों की झूठी ख़बरों का खंडन किया। कहा भी गया कि आपके द्वारा चलाई जा रही यह ख़बर ग़लत और भ्रामक है। ये मीडिया के विश्वसनीयता के लिए बड़ा ख़तरा है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि ऐसे मीडिया तंत्र को एक ख़ास किस्म की राजनैतिक सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। ये मीडिया के विश्वसनीयता के लिए बड़ा ख़तरा है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि ऐसे मीडिया तंत्र को एक ख़ास किस्म की राजनैतिक सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। ये मीडिया के विश्वसनीयता के लिए बड़ा ख़तरा है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि ऐसे मीडिया तंत्र को एक ख़ास किस्म की राजनैतिक सत्ता का संरक्षण प्राप्त है।
ऐसा नहीं है कि मीडिया के अफवाहों और वैचारिक आतंकवाद का प्रभाव हमारे समाज पर नहीं जमाकर्ताओं को लेकर की जा रही एक के बाद एक बहस के बाद ही देखा गया कि किस तरह सड़क पर मुस्लिम फल-सब्ज़ी कलाकारों को निशाना बनाया गया। उन्हें 'उधार' करने का काम किया गया। उनके अंदर अपराधबोध की भावना पैदा करने की कोशिश की गई। अस्पताल में मुस्लिम को भेदभाव का ख़ास तौर पर सामना करना पड़ा। झारखंड, राजस्थान, गुजरात, कई स्थानों पर यह देखा गया। उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक प्राथमिक अस्पताल ने तो बकायदा इतेहार जारी कर कहा कि जिन मुस्लिम मरीज़ों के पास कोरोना का नेगेटिव सर्टिफिकेट नहीं है उसका इलाज नहीं होगा।
मीडिया ने क्या सवाल किया कि नमस्ते ट्रम्प जैसा कार्यक्रम क्यों हुआ? मध्यप्रदेश में सरकार बनाने गिराने का काम क्यों हो रहा है? 9 अप्रैल को दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर कहा कि कोरोना के मामले में तबलीगी को लेकर अलग-अलग दिशानिर्देश क्यों हो रहे हैं क्योंकि दिल्ली सरकार अलग से प्रेस कॉन्फ्रेंस करती थी। क्यों एक समुदाय को लक्षित बनाया जा रहा है? याद करें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली निज़ामुद्दीन मरकज़ के कार्यक्रम के संचालक मौलाना पर एफआईआर के आदेश मार्च के अंत में ही दे दिए थे। मरकज़ के बारे में मार्च के अंत में एक वीडियो में अरविंद केजरीवाल यह बोलते दिखते हैं कि “ये 97 केसेज़ में से 24 केस मरकज़ के हैं, मरकज़ के पूरे विवरण पर मैं अभी (आगे) बात करूँगा ”। मरकज़ को लेकर एक हवा बनाने में भले ही आप उसे आंशिक रूप कहें या कुछ और लेकिन मुझे दिल्ली सरकार की भी भूमिका नज़र आती है। दिल्ली सरकार चाहती है तो इसे एक साम्प्रदायिक रंग देने से रोक सकती थी या रोकने का प्रयास कर सकती थी। दरअसल यह मुझे उस राजनीति का हिस्सा लगता है जहां निज़ामुद्दीन मरकज़ को लेकर कई तरफ़ से वैचारिक हमले हो रहे थे, वहाँ अरविंद केजरीवाल अनुपस्थित होकर अपने उस राष्ट्रवाद को शायद खोना नहीं चाहते होंगे जिसमें वे कभी भीजील ईमाम के साथ खड़े नहीं दिखते और अल्पसंख्यकों के साथ हों। केजरीवाल होने की छवि को ज़रा सा भी पटल पर आने नहीं देते। आज भारतीय राजनीति में कमोबेश यही हो रहा है। वहाँ अरविंद केजरीवाल अनुपस्थित होकर अपने उस राष्ट्रवाद को शायद खोना नहीं चाहते होंगे जिसमें वो कभी शरजील ईमाम के साथ खड़े नहीं दिखते और अल्पसंख्यकों के केजरीवाल होने की छवि को ज़रा सा भी पटल पर आने नहीं देते। आज भारतीय राजनीति में कमोबेश यही हो रहा है। वहाँ अरविंद केजरीवाल अनुपस्थित होकर अपने उस राष्ट्रवाद को शायद खोना नहीं चाहते होंगे जिसमें वो कभी शरजील ईमाम के साथ खड़े नहीं दिखते और अल्पसंख्यकों के केजरीवाल होने की छवि को ज़रा सा भी पटल पर आने नहीं देते। आज भारतीय राजनीति में कमोबेश यही हो रहा है।
दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को इस साल मार्च में दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात में शामिल होने पर 36 विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ लापरवाही और सामाजिक दूरी के उल्लंघन के आरोप तय किए।
जानकारी के मुताबिक़ अदालत ने इन विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ लगे वीज़ा उल्लंघन के आरोपों के खज़िज कर दिया। अदालत ने कहा कि यह बात के सबूत नहीं है कि इन विदेशी नागरिकों ने तब्लीगई जमात के सिद्धांतों और मान्यताओं का प्रचार किया।
अदालत ने एक अन्य आदेश में 8 विदेशी नागरिकों से वीज़ा उल्लंघन के आरोपों को खज़िज कर दिया। ये पर लगे हुए तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने के आरोप भी खज़िज कर दिए गए। अदालत ने कहा कि यह बात के सबूत नहीं है कि इन आठ नागरिकों ने उस दौरान मरकज़ के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। बिना आरोपों के अपने देश वापस लौटने वाला विदेशी नागरिकों का ये पहला समूह होगा।
ट्रायल अदालत ने इससे पहले 911 विदेशी नागरिकों को उनके देश वापस भेजने का आदेश दिया था जबकि 44 विदेशी नागरिकों ने मुक़दमे का सामना करने का फ़ैसला लिया था।
भले ही कोर्ट ने तबलीगी जमाकर्ताओं के ख़िलाफ़ चल रहे मीडिया के गोलों को बेनकाब कर दिया हो लेकिन सवाल तो बनता ही है कि आम लोगों के दिमाग में कोरोनावायरस को लेकर मुसलमानों को उसी तरह निशाना बनाया गया, जो छवि गढ़ने की कोशिश उसकी भर गई है कौन करेगा? क्योंकि कोर्ट की फटकार की ख़बर उस स्तर तक शायद पहुँचती नहीं है जिस स्तर से संगठित रूप से जमाकर्ताओं को बदनाम करने के लिए प्रोपैगैंडा कर झूठी ख़बरे फैलाई गई थी। क्या हम किसी को किसी के कपड़े से 'पहचानने' की फिर कोशिश करेंगे? अगर नर्सों पर थूकने जैसी झूठी और मनगढ़ंत ख़बरों पर आपको फिर से भरोसा करना है तो फिर आपको क्या कहना चाहिए!
बम्बई और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले आने के बाद बिहार के किशनगंज ज़िले के पानी बाग़ स्थित मस्जिद के ईमाम अबू रेहान का कहना है कि "दावत ओ तबलीग (तबलीगी जमाअत) है इस जमात के ताल्लुक़ से पूरे हिंदुस्तान में कोरोना महामारी के वक़्त उन्हें तिलाहा गया है, तरह तरह से प्रोपैगैंडा कर उन्हें फँसाया गया, और अन्यायायज़ और बारी तरीके से उन पर आरोप लगाया गया जो ग़लत साबित हुआ था। मीडिया, इलेट्रॉनिक मीडिया ख़ास कर गोदी मीडिया ने तरह तरह के ग़लत वीडियो से इसको बदनाम करने की कोशिश की चली। आख़िरकार अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से बात खुल कर कर आ गया कि सच क्या है और ग़लत क्या है। दावत ओ तबलीग वाहिद व मुंफ्रीद एक ऐसी जमाअत है जिसमें न कोई सियासी बात होती है और न किसी की कोई मुख़ालफ़त की जाती है और न किसी मसलक की बात की जाती है, सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह और उसके रसूल की बात की जाती है, दुनियाँ। और आख़िरत की बात की जाती है, लोगों के इस्लाह की बात की जाती है, माशरे, समाज को अच्छा बनाने की बात की जाती है, मस्जिदों को अल्लाह के घरों को बदलने की बात की जाती है। इंसानियत और भाईचारगी का पैग़ाम दिया जाता है। ऐसे मुंफरीद और वाहिद जमाअत को बदनाम करना और उनके ऊपर कीचड़ उछालना बुरी और बात थी जिसको हिंदुस्तान के गोदी मीडिया ने उछाला और इसे लेकर लोगों के मन में विद्रोही पहुँचाने की कोशिश की। बहरहाल, अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तब्लीग साफ़ सुथरी जमाअत है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र & इस्तेक़ामत के साथ काम करें '। मस्जिदों को अल्लाह के घरों को सार्वजनिक करने की बात की जाती है। इंसानियत और भाईचारगी का पैग़ाम दिया जाता है। ऐसे मुंफरीद और वाहिद जमाअत को बदनाम करना और उनके ऊपर कीचड़ उछालना बुरी और बात थी जो हिंदुस्तान के गोदी मीडिया ने उछाला और इसे लेकर लोगों के मन में विद्रोह पहुँचाने की कोशिश की। बहरहाल, अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तबलीग स्वच्छ सुथरी जमाअत है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र और इस्तेक़ामत के साथ काम करें '। मस्जिदों को अल्लाह के घरों को सार्वजनिक करने की बात की जाती है। इंसानियत और भाईचारगी का पैग़ाम दिया जाता है। ऐसे मुंफरीद और वाहिद जमाअत को बदनाम करना और उनके ऊपर कीचड़ उछालना बुरी और बात थी जिसको हिंदुस्तान के गोदी मीडिया ने उछाला और इसे लेकर लोगों के मन में विद्रोही पहुँचाने की कोशिश की। बहरहाल, अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तब्लीग साफ़ सुथरी जमाअत है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र & इस्तेक़ामत के साथ काम करें '। अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तबलीग साफ़ सुथरी जमाअआ है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र & इस्तेक़ामत के साथ काम करें '। अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तबलीग साफ़ सुथरी जमाअआ है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र & इस्तेक़ामत के साथ काम करें '।
thenehalahmad@gmail.com || Published : August 26, 2020 || Twocircles.net
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