Tuesday, October 27, 2020

AMU के 41 छात्र बनें यूनानी चिकित्सा अधिकारी, उक्त पद पर कुल 57 चयन, पढ़ें एक छात्रा एवं प्रोफेसर से बातचीत

October 28, 2020


नेहाल अहमद 

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) अपने शताब्दी वर्ष में एक के बाद एक कई उपलब्धियों को अपने खाते में जोड़ रहा है. एएमयू के छात्र एएमयू तराने की पंक्ति 'जो अब्र यहां से उठेगा वो सारे जहां पर बरसेगा' को लगातार एक के बाद एक अच्छी ख़बरों से चरितार्थ कर रहे हैं।  इसी सिलसिले में एक उपलब्धि युनानी मेडिकल शिक्षा के लिए मशहूर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों का है.  उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) द्वारा यूनानी चिकित्सा अधिकारियों के पद के लिए चुने गए 57 उम्मीदवारों में से 41 छात्र एएमयू के हकीम अजमल खान तिब्बिया कॉलेज के हैं. बताते चलें कि हकीम अजमल खान तिब्बिया कॉलेज, यूनानी चिकित्सा संकाय, एएमयू के बीयूएमएस और एमडी पासआउट हैं.

13,14,15 और 16 अक्टूबर को साक्षात्कार के लिए उपस्थित हुए इन छात्रों को देश भर के 171 उम्मीदवारों में से चुना गया था ।

वे मोहम्मद अकरम, अब्दुल हकीम, सैय्यद राशिद अली, ज़की अहमद सिद्दीकी, सरताज अहमद, दानिशमंद, सल्लल्लाह, विकार अहमद, सबिहा सुम्बुल, नजमुद्दीन अहमद सिद्दीकी, मोहम्मद शादाब, मोहम्मद अली, ज़ियाउल हक, मोहम्मद आज़म, तसफ़िया हकीम अंसारी, ज़ाहिद कमाल, रिजवान मंसूर खान, ज़रीन बेग, अनम, मोहम्मद अकरम लईक, रफ़ीउल्लाह, हुमैरा बानो, रिफाकत, शिरीन फ़ातिमा, तरन्नुम ख़ानम, एहसान रऊफ़, अज़ीज़ुर रहमान, अब्दुल कुद्दुस, हुमा अख्तर, अशफाक अहमद, उरूज बी, मोहम्मद असलम, मोहम्मद अज़ीम अशरफ, फारूक अनवर खान, मोहम्मद ज़ाकिर सिद्दीकी, इरम बुशरा, दानिश अख्तर, मोहम्मद संजर किदवई, सबा फातिमा, मोहम्मद इरफ़ान अंसारी और मोहम्मद तारिक़ हैं । 

छात्रों को उपलब्धि के लिए बधाई देते हुए, एएमयू के कुलपति, प्रोफेसर तारिक मंसूर ने कहा कि यह समर्पित संकाय सदस्यों द्वारा निरंतर मार्गदर्शन और छात्रों की कड़ी मेहनत का परिणाम है।

युनानी मेडिसिन के संकाय के डीन प्रो अब्दुल मन्नान ने कहा, "यह आशा की जाती है कि चयनित छात्रों से प्रेरणा लेकर, अन्य लोग भी उच्च लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रेरित होंगे।"

हकीम अजमल खान तिब्बिया कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो सऊद अली खान ने अपनी इस उपलब्धि की सफलता का जश्न मनाने की बात की । साथ ही कहा कि आगे के जीवन में स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के तौर पर राष्ट्र की सेवा करने में सफल होने पर ध्यान केंद्रित करें । 

मोआलिजात विभाग के प्रोफेसर बदरुददुजा खान ने कहा कि "एएमयू समुदाय इन 41 छात्रों पर गर्व करता है" !

हमारे twocircles.net के संवाददाता सह एएमयू में हिंदी विभाग के छात्र नेहाल अहमद ने इस मौके पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के तिब्बिया कॉलेज में तहाफुज़ी वा समाजी तिब विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर अब्दुल अज़ीज़ खान से बात कर उनकी राय जानने की कोशिश की । प्रो. अब्दुल अज़ीज़ खान ने कहा कि  हमारा कॉलेज हिंदुस्तान का सबसे अच्छा कॉलेज है जहां पर ग्रेजुएट एवं पोस्ट ग्रेजुएट को अध्यापन एवं प्रशिक्षण बहुत अच्छा दिया जाता है। एएमयू का अपना नाम भी है। उन्हें यहां होस्टल, लाइब्रेरी, प्रतियोगी वातावरण, संसाधनों की उपस्थिति एवं प्रोफेसर की मौजूदगी जैसे अन्य सुविधाओं का लाभ मिलता है जिससे उन्हें अपने काम को और बेहतर तरह से कर सकने में मदद मिलती है। ख़ास कर मध्यवर्ग के लिए जो कहीं बाहर रह कर ज़्यादा पैसे नहीं दे सकता उसके लिए यह यूनिवर्सिटी, कॉलेज काफ़ी अच्छा है। ये शहर भी काफ़ी सस्ता है। 

यहां की अखिल भारतीय स्तर पर प्रवेश परीक्षा की पद्घति में काफ़ी पारदर्शिता होती है। एमडी के प्रवेश परीक्षा के लिए यूनिवर्सिटी के अंदर-बाहर सभी जगह के छात्रों की पहली पसंद हमारा कॉलेज होता है जो आकर यहां के अच्छे वातावरण से परिचित होते हैं। कुल मिलाकर यहां का प्रदर्शन अच्छा है। पहले यहां जितने छ:/सात सेक्शन थे उसमें और तीन सेक्शन में वृद्धि हूई है जिसमें स्कीन, फिज़ियोलॉजी और 'इलाज बित तदबीर'  शामिल है। 

हकीम अजमल खान के योगदान को बताते हुए उन्होंने कहा कि पूरे हिंदुस्तान में जो तिब की शिक्षा है, उसके लिए तिब्बी दुनियां में यूनानी मेडिसिन को लेकर उनका काफ़ी नाम है। वर्ष 1927 में जब यह कॉलेज बना तो उस वक़्त उनका इंतकाल हो गया।
हमारे कॉलेज का पहले कोई नाम नहीं था। उनके योगदान को देखते हुए उन्हीं के नाम पर इस कॉलेज का नाम रख दिया गया। उन्हीं के नाम पर ही दिल्ली में आयुर्वेदिक एंड युनानी मेडिकल कॉलेज है। बेसिकली वो वहीं पर थे वहीं प्रैक्टिस किया करते थे और यूनानी मेडिसिन का जो लिटरेचर था वह अरबी, फ़ारसी में था। उन्होंने संगठन का निर्माण कर उसका अनुवाद कर वो भी ब्रिटिश हुकूमत में पूरे हिंदुस्तान में उसे फैलाने का काम किया। उन्होंने आयुर्वेद को साथ में मिलाया और यूनानी को एक अलग पहचान दी ताकि अवाम को एक सस्ता और अच्छा इलाज मयस्सर हो सके, जिसका साइड इफेक्ट न हो, सही तरह से इस्तेमाल हो। अलीगढ़ ने हमेशा इन्हीं चीज़ों को तवज्जो दी। आप कभी आएंगे लॉकडाउन के बाद तो देखेंगे कि यहां के ओपीडी में ज़्यादातर जिनका इलाज होता है वो ग़रीब तबके से ताल्लुक़ रखते हैं जिन्हें दवाइयां मुफ़्त दी जाती है। सुविधा बहुत है। अब तो ओपीडी व सेक्शंस बहुत बढ़ गए हैं। कुल मिलाकर यह हिंदुस्तान में युनानी मेडिसिन की शिक्षा, प्रशिक्षण एवं प्रयोग के लिए बेहतर स्थान है।

इस मौके पर हमारे twocircles.net के संवाददाता नेहाल अहमद ने उन 41 चयनित विद्यार्थियों में से एक छात्रा जो UPPSC द्वारा आयोजित परीक्षा पास कर यूनानी चिकित्सा अधिकारी के रूप में चयनित हूई हैं, ज़रीन बेग से बात कर उनका इंटरव्यू लिया:

सवाल 1: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का यूनानी मेडिकल शिक्षा के क्षेत्र में एक अहम योगदान होने की वजह से आप इसे किस तरह देखती हैं और यह उपलब्धि जो आपको मिली है उसमें अलीगढ़ एवं इससे जुड़े हुए लोगों को कितना ज़िम्मेदार मानती हैं ? अपने कॉलेज/यूनिवर्सिटी के किन प्रोफेसर को धन्यवाद देना चाहेंगी !

जवाब: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने शुरू से ही हर क्षेत्र में अपना अहम योगदान दिया है। जहाँ तक बात एएमयू के अजमल खान तिबिया कॉलेज की है तो इसे यूनानी मेडिसिन का ऑक्सफोर्ड कहा जाता है और इस बात को आप देखेंगे कि यहां के भूतपूर्व छात्र समय-समय पर साबित भी करते रहते हैं चाहे वो ऑल इंडिया पीजी इंट्रेंस टेस्ट हो, या यूपीपीएससी के तहत कई तरह की परीक्षा हो, हमेशा से यहां के छात्रों की एक बड़ी तादाद हमेशा से चयनित होती आई है। इसके अलावा देश के कई यूनानी मेडिकल कॉलेजों में यहां के भूतपूर्व छात्र असिस्टेंट, एसोसिएट एवं  प्रोफेसर के तौर पर शिक्षण के कार्य को बख़ूबी अंजाम दे रहे हैं। विद्यार्थियों की कामयाबी में ज़ाहिर सी बात है कि शिक्षकों का किरदार बेहद अहम होता है। उनकी शफ़क़त और रहनुमाई शुरू से ही स्टूडेंट्स को अपने क्षेत्र में कुछ बड़ा करने के लिए उत्साहित करती रहती है। जो विश्वास, भरोसा वो हम विद्यार्थियों पर दिखाते हैं वो कहीं न कहीं वो हमारे व्यक्तित्व को बहुत निखाड़ कर सामने लाती है और सफ़लता के लिए प्रेरित करती है। इस मौके पर मैं अजमल खान तिब्बिया कॉलेज के सारे प्रोफेसर को धन्यवाद देना चाहूंगी, ख़ास तौर पर अपने एमडी विषय तहाफुज़ी व समाजी तिब (टीएसटी); (अंग्रेज़ी में जिसे प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन कहते हैं) विभाग के विभागाध्यक्ष सफ़दर अशरफ़, तिब्बिया कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर सऊद अली ख़ान, डॉक्टर अम्मार इब्न ए अनवर, डॉक्टर अब्दुल अज़ीज़ खान जैसे शिक्षकों का जिनके साथ से एमडी में मुझे काफ़ी कुछ सीखने को मिला। 

सवाल 2: आम तौर पर देखा जाता है कि इस तरह की यूनानी मेडिकल शिक्षा जैसी किसी फील्ड/कोर्स की जानकारी भारत के कई हिस्सों में रह रहे छात्रों को नहीं होती जिससे की वो इन रास्तों पर चलकर अपना कैरियर बनाये. क्या आप मेरी इस बात से सहमत हैं ? आपने इस फील्ड को किन आधारों पर चुना ?

जवाब: जी, बिल्कुल सही सवाल आपने किया। आप देखेंगे कि पूरे हिंदुस्तान में कुछ ही गिने-चुने यूनानी मेडिकल कॉलेज हैं जहां पर यूनानी मेडिकल की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान की जाती है। आम आदमी इसके बारे में बहुत ज़्यादा जानते नहीं, न तो यूनानी मेडिसिन के बारे में, न ही यूनानी मेडिसिन के शिक्षा के पैटर्न का या फिर इस क्षेत्र में जो अवसर है उसके बारे में ज़्यादा नहीं जानते हैं। इसलिए जब वह अपने बच्चों को  कैरियर को लेकर गाइड करते हैं तो उन्हें भी इस बारे में ज़्यादा पता नहीं होता है और आखिरकार जब बारहवीं के बाद जब उन्हें कैरियर का चुनाव करना होता है तो उन्हें मेडिकल, इंजीनियरिंग व अन्य कोर्स जो सामान्यतः लोगों को पता होता है उस राह पर चल पड़ते हैं। जहां तक मेरी बात है  तो अल्हम्दुलिल्लाह, मेरी पैदाइश अलीगढ़ के इल्मी माहौल में हूई जहां पर यूनानी मेडिसिन को लोग अच्छे से जानते-समझते थे। यहां पर अजमल खान तिब्बिया कॉलेज जैसा इदारा मौजूद था (है) । ख़ास तौर पर यहां मैं कहना चाहूंगी कि मेरे वालिद साहब की जो रहनुमाई थी उसने मुझे काफ़ी उत्साहित किया कि मैं इस क्षेत्र को एक अवसर के रूप में लेकर इस क्षेत्र में अपना कैरियर बनाऊं। मेरे वालिद साहब ही इस मामले में मेरे मेंटर, गाइड सबकुछ रहे, उन्होंने ही मुझे इसके लिए सही तरीके से प्रेरित किया और उन्हीं का सपना था कि मैं इस क्षेत्र में नाम रौशन करूं और अल्हम्दुलिल्लाह मुझे इस बात की खुशी है ।

सवाल 3: आप एक छात्रा हैं. इस पेशे में आने के लिए एक आम भारतीय छात्रा को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ? अपने अनुभव के आधार पर भी बता सकतीं हैं।

जवाब: जी, बिल्कुल सही बात है। छात्राओं के लिए  बहुत सी बंदिशें होती है जिसे तोड़कर उन्हें आगे बढ़ना होता है। अगर पूरे भारत की बात करें तो यह कड़वी सच्चाई है कि लड़कियों के तालीम पर उतनी तवज्जो नहीं दी जाती है। प्रोफेशनल एजुकेशनल बहुत सारी लड़कियों के लिए सपना बन कर रह जाता है लेकिन अगर मैं अपनी बात करूं तो अल्हम्दुलिल्लाह मेरे साथ ऐसी कोई दिक्कत नहीं रही। मेरी परवरिश अलीगढ़ के इल्मी माहौल में हूई। मेरे वालिद साहब ने कभी भी लड़कों और लड़कियों में फ़र्क नहीं किया। उन्होंने हम बहनों को भी अच्छी से अच्छी तालीम दिलाने के लिए बहुत मेहनत की। मुझे खुशी है कि हम बहनों को लेकर जो सपना उन्होंने देखा था मुझे खुशी है कि वो सपना पूरा करने का मुझे कुछ हद तक मौका मिला। 

सवाल 4: क्या इस फील्ड में आने के लिए भाषा (मीडियम) को लेकर कोई पाबंदी होती है ? क्या उर्दू इसके लिए अनिवार्य शर्त है ?

जवाब: जी, हां बिल्कुल सही सवाल है आपका । यूनानी मेडिसीन का जो आधार है वो ज़ाहिर सी बात है कि ग्रीक से शुरू होकर अरब से होते हुए ख़ास तौर पर मुग़ल काल में हिंदुस्तान में आया। यूनानी मेडिसीन का जो लिटरेचर है वो बेसिकली वो अरबी, फ़ारसी उसके बाद अनुवाद होकर उर्दू में आया।  यूनानी मेडिसिन को पढ़ने-समझने और ख़ास तौर पर उसमें शिक्षा ग्रहण करने के लिए दो भाषा 'अंग्रेज़ी' और 'उर्दू' में दक्षता होनी चाहिए क्योंकि जो उर्दू में यहां लिटरेचर हैं वो अनुवाद होकर कुछ हद तक अंग्रेज़ी में गई है। इसके अलावा जो मॉडर्न मेडिसिन की किताबें हम पढ़ते हैं वो सारी अंग्रेज़ी में होती है। इसलिए इन दोनों ही भाषाओं पर दक्षता हासिल करना ज़रूरी होता है।

सवाल 5: यूनानी शिक्षा में UPPSC द्वारा मेडिकल ऑफ़िसर बनने के लिए एक बेसिक एलीजिबलिटी क्या होती है ? परीक्षा की प्रक्रिया सहित जानकारी दें ।

जवाब: मेडिकल ऑफ़िस के बेसिक एलीजिबिलिटी के लिए बैचलर ऑफ यूनानी मेडिसिन एंड सर्जरी होना ज़रूरी है जो बीयूएमएस की डिग्री मिलती है लेकिन अगर आपने इस क्षेत्र में पीजी भी कर लिया है तो यह आपके लिए और अच्छा होता है वो आपके लिए एडीशनल पॉइंट हो जाता है और जब आप इंटरव्यू में जाते हैं तो उसके भी पॉइंट्स मिलते हैं और कहीं न कहीं आपके चयन होने की संभावना बढ़ जाती है। जहां तक इसका यूपीएससी का  परीक्षा का पैटर्न है तो जो भी वैकेंसी  मेडिकल ऑफ़िसर की एडवरटाइज़ होती है यूपीएससी उस पर आवेदन मांगती है। फिर उसके बाद रिटेन टेस्ट होते हैं, स्क्रीनिंग होती है, उसमें से कुछ शॉर्ट लिस्ट किये जाते हैं और फिर इंटरव्यू के आधार पर अंतिम रूप से चयन होता है। 

सवाल 6: आप इस फील्ड में आना चाह रहे युवाओं को आप क्या संदेश देना चाहेंगी ?

जवाब: युवाओं के लिए संदेश बहुत साफ है कि वो पहले से ही लक्ष्य बना लें कि किस क्षेत्र में जाना है, करना क्या है ! एकेडमिक- प्रैक्टिस में जाना है, मेडिकल ऑफ़िसर बनना है, जो भी आपका लक्ष्य है  उसको आप पहले से टारगेट करें, उसके हिसाब से आप मेहनत करें। ये बिल्कुल सही है कि तुलनात्मक रूप में इसमें अवसर की कमी है लेकिन जितनी भी है उसमें आप बहुत अच्छा कर सकते हैं। आप यह भरोसा रखें कि कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीं है।

(नेहाल अहमद  twocircles.net में ट्रेनी पत्रकार हैं और साथ ही वर्तमान में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग में एम.ए हिंदी अंतिम वर्ष के छात्र भी हैं)

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