Thursday, October 15, 2020

बिहार चुनाव : तेजस्वी को ‘मीरान हैदर’ पर खामोशी का नुकसान होगा !

October 15, 2020

उमर शब्बीर एहसन Twocircles.net के लिए 

बिहार में राजनीतिक बदलाव के साथ सामाजिक बदलाव होते रहे हैं । इन बदलावों का सबसे बड़ा कारक धार्मिक और जातीय विमर्श की ‘सोशल इन्जीनियरिंग’ था ।  बिहार सबसे रेखांकित राज्य है जहां राजनीतिक लड़ाई हमेशा  दिलचस्प होती है और यह राष्ट्रीय राजनीति  को भी प्रभावित करती है । यहां की राजनीति में सबसे दिलचस्प हिस्सा 5 पार्टियां हैं जो पिछले 2 विधानसभाओं और 2 लोक सभाओं पर हावी है । बिहार का राजनीतिक मौसम हमेशा अनिश्चित होता है और यही वह कारण है जिसकी वजह से बिहार की भविष्यवाणी सटीक और निश्चित नहीं होती है ।

वर्तमान में नीतीश कुमार जी भाजपा और अन्य के समर्थन से सीएम पद संभाल रहे हैं लेकिन इस चुनाव में, आगे की इन बिंदुओं के कारण, यह नीतीश कुमार जी के लिए एक ‘एसिड टेस्ट’ होगा । विरोधी लहर, एनआरसी/सीएए/एनपीआर पर रुख़, कोरोनावायरस और इन सबके बीच व्यवस्था की कड़वी सच्चाई, मज़दूरों सहित सभी प्रकार के प्रवासियों का मुद्दा, बाढ़ और आपदा प्रबंधन का मुद्दा, एनडीए के सीएम चेहरे पर लोजपा का स्टेंड, सीएम पद के चेहरे के लिए भाजपा की राज्य इकाई का रवैया जैसे मुद्दे पर प्रतिक्रिया देखना रोचक होगा। अब स्थिति के मुताबिक , हम देखेंगे कि आगामी चुनाव के लिए पार्टी का दृष्टिकोण और आक्रामकता कैसा रहेगा । नीतीश कुमार को ‘ब्रांड फैक्टर’ जानते हैं जो जेडीयू को जीत का स्वाद देते हैं । उनका शासन और छवि का पिछले चुनाव में भाजपा को हराने, बिहार में राजद और कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में बड़ा योगदान रहा है । इसलिए अगर जदयू भाजपा और लोजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है, तो संभावना अधिक है कि जदयू राज्य में बरकरार रहेगी ।

 बीजेपी बिहार चुनाव में सुरक्षित खेलना चाहती है क्योंकि पश्चिम बंगाल उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण है । वे दिल्ली चुनाव हार गए हैं फिर भी उनके वोट % बढ़ गए क्योंकि कांग्रेस में गिरावट आई है । इसलिए, वे सुरक्षित खेलना चाहती है । आरजेडी बिहार में संघर्ष करती दिख रही है बात चाहे लालू की ग़ैर-मौजूदगी की हो या नकारात्मक कदम चाहे वो मौजूदा नीतीश सरकार की विरोधी स्वर में विफलता या अपने ही ज़मीनी कार्यकर्ता मीरान हैदर के लिए ख़ामोशी इख़्तियार करना जिसकी वजह से लोग राजद से किनाराकशी कर सकते हैं । भागलपुर दंगों के कारण बिहार में कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं बचा है । इस चुनाव में एमआईएम भी कोशिश कर रही है, हो सकता है कि मुस्लिम वोट % भी उनकी ओर स्थानांतरित हो जाए और आरजेडी और जदयू का मुस्लिम वोट  %  इस बार घट जाए । आज बिहार के मुसलमानों की राजनीति को करीब से देखने पर यही लगता है कि वे अब एक शांत मतदाता के रूप में हरेक सीट पर उसी उम्मीदवार के पक्ष में एकजुट होकर वोट देने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, जो भाजपा गठबंधन के उम्मीदवार को हराने की कुव्वत रखता हो ।


उत्तर प्रदेश के मुसलमानों ने 1999 के लोकसभा और 2002 के विधानसभा चुनावों के चतुष्कोणीय मुकाबले में किया था लेकिन बिहार में अधिकांश सीटों पर आमने-सामने का ही मुकाबला होना है. ऐसे में बिहार के मुसलमानों का राजद और कांग्रेस के गठबंधन के साथ रहना मजबूरी है, क्योंकि यही गठबंधन भाजपा गठबंधन का मुकाबला करता दिखाई दे रहा है लेकिन बिहार के मुस्लिम नेताओं को ख़ासतौर से इसका ख़्याल रखना चाहिये कि वह सभी पार्टी में रहें और वहाँ राजनीति करें लेकिन कतई झोला ढोने वाला नहीं बनें । पार्टी का अध्यक्ष जिस समुदाय का हो उस समुदाय में ज़्यादा प्रचार कर उस पार्टी को मज़बूत कीजिये लेकिन ऐसा ना हो की पार्टी का अध्यक्ष जिस कम्यूनिटी का हो उस कम्यूनिटी का वोट पार्टी को ना मिले और आप सिर्फ अपनी ही कम्यूनिटी का वोट दिलाने में रह जायें । अगर आप राजनीति में हैं तो राजनीति कीजिये ।

(उमर शब्बीर एहसन पटना के दीघा विधानसभा क्षेत्र के निवासी हैं और साथ ही वर्तमान में एएमयू  में  छात्र हैं,यह बिहार चुनाव पर उनकी निजी राय है ) नोट: यह लेख पहली बार 15 अक्टूबर 2020 को Twocircles.net ऑनलाइन पोर्टल पर प्रकाशित हुआ)

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