मैंने अब निर्णय लिया है कि किसी भी समसामयिक एवं ज्वलंत सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक व अन्य मुद्दों पर अपनी राय 2-4-8 पंक्तियों में नहीं बल्कि एक शोधपरक आलेख के माध्यम से उस विषय पर समग्र दृष्टिकोण को समाहित करते हुए रखूँगा जिसमें ज़रूरत के हिसाब से उस आलेख में संबंधित विषय के ज़रूरी आंकड़े, उद्धरण-स्रोत, इतिहास व अन्य पहलुओं को भी शामिल किया जाएगा जो मुख्य शीर्षक के साथ-साथ कई उपशीर्षक (सब-हेडिंग) में बंटा होगा , जिसे पढ़ना होगा वो पूरा आलेख ज़रूर पढ़ेंगे, जिसे नहीं पढ़ना होगा वो कम से कम कही गई आधे-अधूरे बात की तरह उसको ग़लत रूप में तो नहीं लेंगे जो कई बार अब तक होता आया है. उसके बाद भी वो न समझें तो यह उनकी बात. "हमारे व्यंग्य प्रधान समाज में व्यंग्य को समझने वाले लोग बहुत कम हैं" वैसे आपको बताता चलूँ कि उद्धरण चिह्न में मेरी यह बात भी व्यंग्य से कम नहीं, जब तक ज़िंदा हूँ, लिखता रहूँगा, मैं लिखना बंद नहीं करूँगा.
आप से भी यह अनुरोध करता हूँ कि कृपया फेसबुक को फेसबुक रहने दें, इसे ट्विटर की तरह न बनाएँ. एक ट्वीट में ज़्यादा से ज़्यादा 280 शब्दों में अपनी बात रखनी होती है. अब वहाँ भी लोग Thread बोलकर अनेक ट्वीट में किसी ख़ास विषय पर अपनी बात रख़ते हैं.यहाँ शब्दों की वैसी सीमाएं, बाध्यताएँ नहीं है. आप यहाँ एक जगह लंबे आलेख लिख कर अपनी बात को केवल सही ढंग से रख ही नहीं सकते बल्कि उसके साथ-साथ अपने लेखन शैली में सुधार भी ला सकते हैं. दिक्कत यह है कि बहुत से लोगों को (जिनमें मैं भी शामिल हूँ), उन्हें अपनी राय देने की बहुत जल्दी होती है. उधर घटना घटी नहीं कि 'लाइव' और 'ब्रेकिंग न्यूज़' की तर्ज़ पर अपनी राय भी ईधर शुरू हो जाती है. अब यह ग़लती करने से बचूँगा, आप भी बचने की कोशिश कीजिए. अपनी बात रखिये, थोड़ी देर ही सही. इसलिए नहीं कि आपको इस दुनियाँ के हर बात में 'हाँ' में 'हाँ' मिलाकर सहमति प्रदान कर लोगों को 'खुश' रखना है बल्कि इसलिए कि जब आप कुछ बोलें/लिखें तो कम से कम किसी की भावनाओं को ठेस न पहुँचे. किताबी भाषा का प्रयोग करूँगा. उसके बाद भी वो न समझे तो उसकी मर्ज़ी, आप और हमारा कर्तव्य केवल वहीं तक है. सही को सही और ग़लत को ग़लत कहने की हिम्मत रखें.
कई बार हमारी 2-4-8 पंक्तियों में कही गई बातों का कई लोग ग़लत अर्थ निकाल लेते हैं या हम जो कहना चाह रहे होते हैं, उसका भाव शायद कहीं मर जाता है और संदेश वो नहीं जाता शायद कुछ और जा रहा होता है अथवा फेसबुक पर हर तरह के लोग हैं तो वो आपकी बातों का कई बार अर्थ, ग़लत रूप में ले लेते हैं. राय एवं स्टैंड रखना बहुत ज़रूरी है लेकिन रिश्ते भी महत्वपूर्ण हैं, रिश्तों को महत्व दें. व्यक्तिगत आलोचना से बचें. गुनाह की आलोचना ज़रूर करें, गुनहगार की नहीं. इतना मेहनत और अध्ययन कर आलेख लिखें कि उसके विरोध में जो अपनी बात कहने की कोशिश करें, एक बार उसे भी अपनी प्रतिक्रिया देने से पहले अपने सारे स्रोतों की जाँच करनी पड़े, अन्यथा बेवजह केवल प्रोफाइल को अपडेट रखने के लिए कुछ न कुछ न लिखें. जो यहाँ आलेख आएगा उसके साथ उस ब्लॉग आलेख का लिंक भी यहाँ उसके साथ शेयर कर दूँगा. कोशिश करूँगा पहले अपने ब्लॉग पर डाल दूँ फिर यहाँ शेयर करूँ. इसी बहाने ब्लॉग भी अपडेट होता रहेगा और समय का भी बचत होगा. कुछ लिखा हुआ मेरा, मेरे ब्लॉग पर आप पढ़ सकते हैं. एक बार फिर कहूँगा, जल्दबाज़ी में कोई बात कहने से बचें और शोध के साथ अपनी राय ज़रूर दें, धन्यवाद !
उर्दू के मशहूर शायर वसीम बरेलवी के शब्दों में कहूँ तो :
कौन-सी बात कहाँ, कैसे कही जाती है
ये सलीक़ा हो, तो हर बात सुनी जाती है~ नेहाल अहमद,
ब्लॉगर,https://nehalahmadofficial.blogspot.com
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