Wednesday, August 26, 2020

मीडिया का झूठा षड्यंत्र और जमातियों की अदालत में जीत का मतलब !

August 27, 2020

नेहाल अहमद | Twocircles.net 

एक झूठ को अगर बार-बार नियमित रूप से अगर प्रोपैगैंडा के लिए तैयार किया जाए तो वह सच लगने लगता है और जब हमारा समाज हर ख़बर को फिर से जाँच करने वाला न हो, फारवर्ड करने वाला हो तो प्रोपैगैंडा का काम और आसान हो जाता है। यह प्रोपैगैंडा कोरोनावायरस के दौर में तबलीगी जमाकर्ताओं के ख़िलाफ़ देखने को मिलती रही है जिसे समाज का एक तबका दिन-रात ख़बरों में देखता वही को सच मानने लगा और अफ़्मीर में अब जाकर कोर्ट ने कहा है कि वह प्रोपैगैंडा था।

कोरोनावायरस के पत्रों के दौर में लोकडाउन में जहाँ हज़ारों की तादाद में बड़े शहरों में एफ ने प्रवासी मजदूर अपने गाँव के लिए शहरों से वापसी के लिए पैदल ही घर को कूच कर रहे थे वहीं हमारा मीडिया क्या कर रहा था? हमें सोचने की आदत है लेकिन अगर हम याद करते हैं तो हमें याद करेंगे कि किस तरह के दौर में वे दिल्ली के निज़ामुद्दीन मरकज़ के तब्लीगी जमाकर्ताओं को मोहरा बना रहे थे। जो कई हफ़्तों तक ख़बरों में चलता रहा है। सत्ता के साथ मेलजोल का खेल मीडिया का भले ही पूरी तरह से नया हो लेकिन यह नफ़रत तो नई लगती है। जहाँ कई देश कोरोनावायरस से निजात के लिए दवाई खोजने में लगे थे, वहीं हमारा मीडिया जमाकर्ताओं को खोज रहा था। यह अलग बात है कि वे जमाती छिपे हुए नहीं थे। जमाकर्ताओं को लेकर मीडिया उनके 'छिपे' होने और दूसरे समुदाय के लोगों के 'फंसे' होने की बात करता था। वह मुसलमानों को एक अपराधी की नज़र से देख रहा था या यह कहना ज़्यादा उचित होगा कि आपको वो 'चश्मे' दे रहा था जिसे पहन कर मुसलमान को देखा जाए तो वह अपराधी नज़र आये। झूठी ख़बरों का सिलसिला एक के बाद एक जारी रहा। कई शहरों की स्थानीय पुलिस ने सैटेलाइट पर बड़े-बड़े मीडिया चैनलों की झूठी ख़बरों का खंडन किया। कहा भी गया कि आपके द्वारा चलाई जा रही यह ख़बर ग़लत और भ्रामक है। ये मीडिया के विश्वसनीयता के लिए बड़ा ख़तरा है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि ऐसे मीडिया तंत्र को एक ख़ास किस्म की राजनैतिक सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। ये मीडिया के विश्वसनीयता के लिए बड़ा ख़तरा है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि ऐसे मीडिया तंत्र को एक ख़ास किस्म की राजनैतिक सत्ता का संरक्षण प्राप्त है। ये मीडिया के विश्वसनीयता के लिए बड़ा ख़तरा है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि ऐसे मीडिया तंत्र को एक ख़ास किस्म की राजनैतिक सत्ता का संरक्षण प्राप्त है।

ऐसा नहीं है कि मीडिया के अफवाहों और वैचारिक आतंकवाद का प्रभाव हमारे समाज पर नहीं जमाकर्ताओं को लेकर की जा रही एक के बाद एक बहस के बाद ही देखा गया कि किस तरह सड़क पर मुस्लिम फल-सब्ज़ी कलाकारों को निशाना बनाया गया। उन्हें 'उधार' करने का काम किया गया। उनके अंदर अपराधबोध की भावना पैदा करने की कोशिश की गई। अस्पताल में मुस्लिम को भेदभाव का ख़ास तौर पर सामना करना पड़ा। झारखंड, राजस्थान, गुजरात, कई स्थानों पर यह देखा गया। उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक प्राथमिक अस्पताल ने तो बकायदा इतेहार जारी कर कहा कि जिन मुस्लिम मरीज़ों के पास कोरोना का नेगेटिव सर्टिफिकेट नहीं है उसका इलाज नहीं होगा।

मीडिया ने क्या सवाल किया कि नमस्ते ट्रम्प जैसा कार्यक्रम क्यों हुआ? मध्यप्रदेश में सरकार बनाने गिराने का काम क्यों हो रहा है? 9 अप्रैल को दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने दिल्ली सरकार को पत्र लिखकर कहा कि कोरोना के मामले में तबलीगी को लेकर अलग-अलग दिशानिर्देश क्यों हो रहे हैं क्योंकि दिल्ली सरकार अलग से प्रेस कॉन्फ्रेंस करती थी। क्यों एक समुदाय को लक्षित बनाया जा रहा है? याद करें कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली निज़ामुद्दीन मरकज़ के कार्यक्रम के संचालक मौलाना पर एफआईआर के आदेश मार्च के अंत में ही दे दिए थे। मरकज़ के बारे में मार्च के अंत में एक वीडियो में अरविंद केजरीवाल यह बोलते दिखते हैं कि “ये 97 केसेज़ में से 24 केस मरकज़ के हैं, मरकज़ के पूरे विवरण पर मैं अभी (आगे) बात करूँगा ”। मरकज़ को लेकर एक हवा बनाने में भले ही आप उसे आंशिक रूप कहें या कुछ और लेकिन मुझे दिल्ली सरकार की भी भूमिका नज़र आती है। दिल्ली सरकार चाहती है तो इसे एक साम्प्रदायिक रंग देने से रोक सकती थी या रोकने का प्रयास कर सकती थी। दरअसल यह मुझे उस राजनीति का हिस्सा लगता है जहां निज़ामुद्दीन मरकज़ को लेकर कई तरफ़ से वैचारिक हमले हो रहे थे, वहाँ अरविंद केजरीवाल अनुपस्थित होकर अपने उस राष्ट्रवाद को शायद खोना नहीं चाहते होंगे जिसमें वे कभी भीजील ईमाम के साथ खड़े नहीं दिखते और अल्पसंख्यकों के साथ हों। केजरीवाल होने की छवि को ज़रा सा भी पटल पर आने नहीं देते। आज भारतीय राजनीति में कमोबेश यही हो रहा है। वहाँ अरविंद केजरीवाल अनुपस्थित होकर अपने उस राष्ट्रवाद को शायद खोना नहीं चाहते होंगे जिसमें वो कभी शरजील ईमाम के साथ खड़े नहीं दिखते और अल्पसंख्यकों के केजरीवाल होने की छवि को ज़रा सा भी पटल पर आने नहीं देते। आज भारतीय राजनीति में कमोबेश यही हो रहा है। वहाँ अरविंद केजरीवाल अनुपस्थित होकर अपने उस राष्ट्रवाद को शायद खोना नहीं चाहते होंगे जिसमें वो कभी शरजील ईमाम के साथ खड़े नहीं दिखते और अल्पसंख्यकों के केजरीवाल होने की छवि को ज़रा सा भी पटल पर आने नहीं देते। आज भारतीय राजनीति में कमोबेश यही हो रहा है।

दिल्ली की एक अदालत ने सोमवार को इस साल मार्च में दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात में शामिल होने पर 36 विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ लापरवाही और सामाजिक दूरी के उल्लंघन के आरोप तय किए।

जानकारी के मुताबिक़ अदालत ने इन विदेशी नागरिकों के ख़िलाफ़ लगे वीज़ा उल्लंघन के आरोपों के खज़िज कर दिया। अदालत ने कहा कि यह बात के सबूत नहीं है कि इन विदेशी नागरिकों ने तब्लीगई जमात के सिद्धांतों और मान्यताओं का प्रचार किया।

अदालत ने एक अन्य आदेश में 8 विदेशी नागरिकों से वीज़ा उल्लंघन के आरोपों को खज़िज कर दिया। ये पर लगे हुए तबलीग़ी जमात के कार्यक्रम में शामिल होने के आरोप भी खज़िज कर दिए गए। अदालत ने कहा कि यह बात के सबूत नहीं है कि इन आठ नागरिकों ने उस दौरान मरकज़ के कार्यक्रम में हिस्सा लिया। बिना आरोपों के अपने देश वापस लौटने वाला विदेशी नागरिकों का ये पहला समूह होगा।

ट्रायल अदालत ने इससे पहले 911 विदेशी नागरिकों को उनके देश वापस भेजने का आदेश दिया था जबकि 44 विदेशी नागरिकों ने मुक़दमे का सामना करने का फ़ैसला लिया था।

भले ही कोर्ट ने तबलीगी जमाकर्ताओं के ख़िलाफ़ चल रहे मीडिया के गोलों को बेनकाब कर दिया हो लेकिन सवाल तो बनता ही है कि आम लोगों के दिमाग में कोरोनावायरस को लेकर मुसलमानों को उसी तरह निशाना बनाया गया, जो छवि गढ़ने की कोशिश उसकी भर गई है कौन करेगा? क्योंकि कोर्ट की फटकार की ख़बर उस स्तर तक शायद पहुँचती नहीं है जिस स्तर से संगठित रूप से जमाकर्ताओं को बदनाम करने के लिए प्रोपैगैंडा कर झूठी ख़बरे फैलाई गई थी। क्या हम किसी को किसी के कपड़े से 'पहचानने' की फिर कोशिश करेंगे? अगर नर्सों पर थूकने जैसी झूठी और मनगढ़ंत ख़बरों पर आपको फिर से भरोसा करना है तो फिर आपको क्या कहना चाहिए!

बम्बई और दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले आने के बाद बिहार के किशनगंज ज़िले के पानी बाग़ स्थित मस्जिद के ईमाम अबू रेहान का कहना है कि "दावत ओ तबलीग (तबलीगी जमाअत) है इस जमात के ताल्लुक़ से पूरे हिंदुस्तान में कोरोना महामारी के वक़्त उन्हें तिलाहा गया है, तरह तरह से प्रोपैगैंडा कर उन्हें फँसाया गया, और अन्यायायज़ और बारी तरीके से उन पर आरोप लगाया गया जो ग़लत साबित हुआ था। मीडिया, इलेट्रॉनिक मीडिया ख़ास कर गोदी मीडिया ने तरह तरह के ग़लत वीडियो से इसको बदनाम करने की कोशिश की चली। आख़िरकार अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से बात खुल कर कर आ गया कि सच क्या है और ग़लत क्या है। दावत ओ तबलीग वाहिद व मुंफ्रीद एक ऐसी जमाअत है जिसमें न कोई सियासी बात होती है और न किसी की कोई मुख़ालफ़त की जाती है और न किसी मसलक की बात की जाती है, सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह और उसके रसूल की बात की जाती है, दुनियाँ। और आख़िरत की बात की जाती है, लोगों के इस्लाह की बात की जाती है, माशरे, समाज को अच्छा बनाने की बात की जाती है, मस्जिदों को अल्लाह के घरों को बदलने की बात की जाती है। इंसानियत और भाईचारगी का पैग़ाम दिया जाता है। ऐसे मुंफरीद और वाहिद जमाअत को बदनाम करना और उनके ऊपर कीचड़ उछालना बुरी और बात थी जिसको हिंदुस्तान के गोदी मीडिया ने उछाला और इसे लेकर लोगों के मन में विद्रोही पहुँचाने की कोशिश की। बहरहाल, अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तब्लीग साफ़ सुथरी जमाअत है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र & इस्तेक़ामत के साथ काम करें '। मस्जिदों को अल्लाह के घरों को सार्वजनिक करने की बात की जाती है। इंसानियत और भाईचारगी का पैग़ाम दिया जाता है। ऐसे मुंफरीद और वाहिद जमाअत को बदनाम करना और उनके ऊपर कीचड़ उछालना बुरी और बात थी जो हिंदुस्तान के गोदी मीडिया ने उछाला और इसे लेकर लोगों के मन में विद्रोह पहुँचाने की कोशिश की। बहरहाल, अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तबलीग स्वच्छ सुथरी जमाअत है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र और इस्तेक़ामत के साथ काम करें '। मस्जिदों को अल्लाह के घरों को सार्वजनिक करने की बात की जाती है। इंसानियत और भाईचारगी का पैग़ाम दिया जाता है। ऐसे मुंफरीद और वाहिद जमाअत को बदनाम करना और उनके ऊपर कीचड़ उछालना बुरी और बात थी जिसको हिंदुस्तान के गोदी मीडिया ने उछाला और इसे लेकर लोगों के मन में विद्रोही पहुँचाने की कोशिश की। बहरहाल, अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तब्लीग साफ़ सुथरी जमाअत है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र & इस्तेक़ामत के साथ काम करें '। अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तबलीग साफ़ सुथरी जमाअआ है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र & इस्तेक़ामत के साथ काम करें '। अल्लाह तबारक व तआला की तरफ़ से यह बात खुल कर कर सामने आ गई कि दावत ओ तबलीग साफ़ सुथरी जमाअआ है। यह कुसूरवार नहीं है। इसके उपखंड बंबई और दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था। मैं ऐसे मौके से तमाम मुसलमानों और ख़ास तौर से जो दावत ओ तबलीग से जुड़े हुए हैं, उन मुसलमानों से दरख्वास्त कर देंगे कि वो सब्र & इस्तेक़ामत के साथ काम करें '।

thenehalahmad@gmail.com || Published : August 26, 2020 || Twocircles.net 


Monday, August 24, 2020

जमशेदपुर में पुलिस हिरासत से रिहा होने के बाद नौशाद की मौत, परिवार ने लगाया ‘कस्टोडियल टॉर्चर’ का आरोप

August 25, 2020

नाज़िश हुसैन । ख़बर का हिंदी अनुवाद: नेहाल अहमद Twocircles.net 

झारखंड के जमशेदपुर के गोलमुरी इलाके के एक ऑटो रिपेयर शॉप के मालिक मोहम्मद नौशाद (45) के परिवार ने राज्य पुलिस पर नौशाद को हिरासत में प्रताड़ित करने का आरोप लगाया है ।

TwoCircles.net से बात करते हुए, परिवार के सदस्यों ने कहा कि 10 अगस्त को, गोलमुरी में, जमशेदपुर के बर्मामाइंस थाना और गोलमुरी थाने के पुलिसकर्मी दोपहर में मोहम्मद नौशाद के घर पहुंचे और उन्हें अपने साथ आने का आदेश दिया । परिवार ने कहा, “उन्होंने नौशाद से पूछताछ के लिए आने को कहा ।”

जब परिवार ने पूछताछ की कि उन्हें उससे पूछताछ करने की आवश्यकता क्यों है, तो पुलिसकर्मियों ने सिर्फ नौशाद को साथ आने के लिए कहा । परिवार ने कहा, “उन्होंने नौशाद को जीप में बैठा लिया ।”

जब परिवार उसी दिन पुलिस स्टेशन गया, तो उन्हें वहां नौशाद नहीं मिला।

“जब हम गोलमुरी थाने पहुंचे, तो नौशाद वहां नहीं थे,” नौशाद के बहनोई यूसुफ पटेल ने TwoCircles.net को बताया।

“हम उसके ठिकाने के बारे में पूछताछ करते रहे लेकिन उसका पता नहीं लगा सके । उस दौरान मेरे एक रिश्तेदार ने फोन किया और हमें बताया कि उसने नौशाद को बर्मामाइंस थाने में देखा है । उन्होंने कहा कि नौशाद ठीक से चल नहीं पा रहा था और पुलिस द्वारा ले जाया जा रहा था लेकिन बर्मामाइंस थाना पहुंचने पर, हमें उनसे मिलने की अनुमति नहीं थी, ”यूसुफ ने कहा ।

यूसुफ ने कहा कि पुलिस ने बस इस बात से इंकार कर दिया कि वे नौशाद को वहां ले आए थे । उन्होंने कहा, “दोपहर 3:30 बजे हमें कॉल आया,” आपका मरीज एमजीएम अस्पताल में गंभीर स्थिति में है । “

यूसुफ ने कहा कि जब परिवार अस्पताल पहुंचा तो उन्हें वहां दो पुलिसकर्मी मिले, जिन्होंने बताया कि वे बर्मामीन्स थाने के थे । अस्पताल में डॉक्टर ने बताया कि नौशाद एक तरफ से लकवाग्रस्त हैं । यूसुफ़ ने कहा कि हमने देखा कि उसके शरीर पर चोट के निशान थे । हमने यह रिकॉर्ड किया और तस्वीरें लीं ।

आधी रात को, परिवार घायल नौशाद को टीएमएच अस्पताल ले गया । वह कुछ दिनों तक उपचाराधीन रहा और परिवार का दावा है कि 13 अगस्त को टीएमएच अस्पताल ने नौशाद को अस्पताल से छुट्टी देने और उसे घर ले जाने के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया ।

“हम उसे इस हालत में कहाँ ले जाएँगे ? वह एक पाइप की मदद के बिना भोजन लेने में भी सक्षम नहीं है, ”नौशाद के परिवार से पूछताछ की । यूसुफ कहते हैं, “टीएमएच ने जवाब दिया कि वे मरीज को छोड़ने के लिए दबाव में हैं।”

16 अगस्त को नौशाद के परिवार ने अस्पताल के बिलों का भुगतान किया और उन्हें छुट्टी दे दी गई और घर ले जाया गया

परिवार ने स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता से संपर्क किया, जिन्होंने राज्य की राजधानी रांची में राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) में रोगी को ले जाने के लिए उनके लिए एक एम्बुलेंस की व्यवस्था की । यूसुफ़ कहते हैं कि “रिम्स में कोई डॉक्टर नहीं था । हम 21 अगस्त को वापस लौटे । उस दिन, उसकी गंभीर स्थिति को देखते हुए, हम उसे एक स्थानीय चिकित्सक के पास ले गए । उस दौरान नौशाद का निधन हो गया “।

यूसुफ अपने बहनोई के इंतेक़ाल से दुखी हैं और उसकी मौत के लिए जमशेदपुर पुलिस को जिम्मेदार ठहराता हैं।

उन्होंने कहा, ” उन्होंने कोई मामला दर्ज नहीं किया और न ही उन्होंने उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की । वे बस उसे ले गए और उसे इतनी बुरी तरह से पीटा कि वह अपने आप नहीं चल सका । इसके बाद, उन्होंने उसे अस्पताल में रखा और छोड़ दिया । पुलिस ने उसे पीटा और उसे इतना यातना दी कि उसकी बुरी हालत हो गई जिसके कारण बाद में उसकी मृत्यु हो गई, ”उन्होंने कहा।

21 अगस्त को नौशाद के परिवार और कुछ स्थानीय लोगों ने विरोध किया और पुलिस कर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने और परिवार को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की ।

यूसुफ़ ने कहा कि “पुलिस ने हमें लिखित में दिया कि वे मजिस्ट्रेट के सामने वीडियोग्राफी के साथ पोस्टमार्टम करेंगे और अगर उन्हें पुलिस द्वारा शारीरिक यातना के सबूत मिलते हैं, तो वे गलत पुलिस के खिलाफ कार्रवाई करेंगे । इसके बाद ही, उन्होंने शव को पुलिस को सौंप दिया ।”

TwoCircles.net से बात करते हुए, जमशेदपुर सिटी एसपी, सुभाष चंद्र जाट ने कहा, “एक आरोप था कि वह (नौशाद) चोरी के ऑटो पार्ट्स खरीदता है । हम उसे 10 अगस्त को थाने ले आए । उन्हें रक्तचाप की समस्या थी । थाने में, उनका रक्तचाप बढ़ गया और हमने उन्हें एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया, उसके बाद उन्हें टीएमएच अस्पताल ले जाया गया, “और कहा कि डीएसपी ट्रैफिक ने नौशाद के खिलाफ आरोपों की जांच की, जो साबित नहीं हो सका । “16 अगस्त को, उन्हें THM अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और 21 अगस्त को उनकी मृत्यु हो गई । हमने वीडियोग्राफी के साथ मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में पोस्टमॉर्टम किया ताकि कोई भेदभाव का सवाल न बने । ”

नौशाद ने उच्च रक्तचाप से पीड़ित पुलिस संस्करण पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “ऐसा कुछ नहीं है । वे केवल 45 वर्ष के थे और आज तक उन्हें कभी कोई बीमारी नहीं हुई । उन्होंने कभी भी उच्च रक्तचाप या किसी भी चीज के लिए कोई दवा नहीं ली, क्योंकि उनके पास ऐसा कोई स्वास्थ्य मुद्दा नहीं था । “

युसूफ आगे कहते हैं कि पुलिस ने घायल नौशाद को एमजीएम अस्पताल में भर्ती नहीं कराया । “उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया। नौशाद अस्पताल के बाहर पड़ा था। जब हम अस्पताल पहुंचे, पुलिस ने बस छोड़ दी, ”वह कहते हैं ।

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के राज्य महासचिव, रेयाज़ शरीफ कहते हैं, “भले ही उनके पास कुछ रिकॉर्ड था, लेकिन पुलिस के पास उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित करने का कोई अधिकार नहीं है कि वे इस तरह के स्टेज तक जा पहुँचे और मार दे । सामान्य स्थिति में, किसी को भी ब्रेन हैमरेज नहीं होता । उसके शरीर पर शारीरिक यातना के निशान हैं । उन्हें शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया था और शायद इसी वजह से उन्हें उच्च रक्तचाप हो गया और इसके बाद उन्हें लकवा मार गया । इसलिए जो परिवार कह रहा है उसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है । ”

नौशाद परिवार का अकेला ब्रेडविनर था। वह 10 साल के बेटे और एक पत्नी से बच गया है । “इस लॉकडाउन में, वे पहले से ही परेशान थे और कठिनाइयों का सामना कर रहे थे । और अब पुलिस ने उसकी जान ले ली । अब उनके परिवार की देखभाल करने वाला कोई नहीं है । यूसुफ़ कहते हैं कि पुलिस ने उन्हें न्याय दिलाने के लिए क्या किया है ।

युसुफ के मुताबिक, जिस अस्पताल में पोस्टमार्टम किया गया, वहां करीब 8-10 पुलिसकर्मी थे । “जब हमने उन्हें उनके शरीर पर चोट के निशान दिखाए तो उन्होंने कहा कि यह सिर्फ एक काला निशान है । मैंने तर्क दिया कि यह चोट के कारण उत्पन्न चोट का निशान है, 10 दिनों के बाद यह काला हो जाएगा । हालांकि, पुलिस ने इसे काले निशान के रूप में लिखने पर जोर दिया। मैंने पुलिस से कहा, आप जो चाहें लिख सकते हैं । हम इसे अदालत में सुलझाएंगे, ”उन्होंने कहा।

पोस्टमार्टम के बाद नौशाद को 22 अगस्त की शाम को दफनाया गया था।

बिहार में सभी 243 सीटों पर लड़ेगी चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी

August 25, 2020 

नेहाल अहमद | Twocircles.net

भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने बिहार विधानसभा चुनाव में 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है। चंद्रशेखर की आजाद समाज पार्टी आगामी बिहार विधानसभा चुनाव के मैदान में किस्मत आजमाने उतरेगी. चंद्रशेखर आजाद ने पटना में मंगलवार को इसकी घोषणा की है।

बिहार के राजनीतिक समीकरण को देखते हुए विधानसभा चुनाव के मैदान में चंद्रशेखर आजाद की पार्टी के ताल ठोकने को अहम माना जा रहा है। हालांकि चंद्रशेखर आजाद इससे पहले आधिकारिक तौर पर कोई चुनाव नहीं लड़े हैं लेकिन बिहार विधानसभा में उनकी पार्टी के प्रत्याशी दूसरे दलों के उम्मीदवारों के सामने चुनौती पेश करेंगे।

बिहार के चुनावी मैदान में जनता दल यूनाइटेड (जदयू), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), कांग्रेस जैसी मुख्य पार्टियां मैदान में होंगी. लेकिन अब बिहार की सियासत में आजाद समाज पार्टी की एंट्री भी होने जा रही है।

अगले कुछ महीने में बिहार विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने कहा था कि बिहार में विधानसभा चुनाव तय समय के मुताबिक ही होंगे। चुनाव के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल रखा जाए इसके लिए एक बूथ पर मतदाताओं की अधिकतम संख्या 1000 फिक्स कर दी गई हैं।

भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद ने आजाद समाज पार्टी बनाई है. इससे पहले आधिकारिक तौर पर उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा है। समझा जाता है कि 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से पहले वो बिहार  में अपनी पार्टी की रिहर्सल करने उतर रहे हैं।

यह देखना दिलचस्प होगा कि बिहार में भीम आर्मी क्या गुल खिला पाती है ? क्योंकि बहुत से लोग इस चुनाव को चंद्रशेखर के लिए एक प्रयोग के तौर पर देख रहे हैं हालांकि इस बात पर भी भीम आर्मी को सोंचना चाहिए कि बिहार में बिना किसी बड़े सामाजिक सरोकार के कार्य के  बिना सीधे बिहार के चुनाव में कूदने से लोग उन्हें ‘बाहरी’ होने का तमगा न दें डालें, जो उनके पार्टी के लिए फायदेमंद साबित न होगा ।

गठबंधन के मामलों में अभी तक कोई बात साफ़ तौर पर निकल कर नहीं आई है। चंद्रशेखर रावण गठबंधन के मामलों में अभी कुछ भी खुलकर नहीं बोल रहे। राजनैतिक विश्लेषक की मानें तो अगर गठबंधन हुआ भी तो राजद से हो सकता है लेकिन एआईएमआईएम बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के साथ गठबंधन कर रही है ।देखना ये दिलचस्प होगा कि क्रांति के इतिहास से भरी धरती बिहार में चंद्रशेखर अपने आप को किस तरह से जनता के सामने प्रस्तुत करते हैं जिससे कि यह उनके राजनैतिक जीवन में एक मुख्य बिंदु साबित हो ।

thenehalahmad@gmail.com || Published: August 15, 2020 || Twocircles.net 

Thursday, August 6, 2020

AMU देश भर में तीसरा सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय: IndiaToday रैंकिंग 2020


Picture Credit: Engineer Maqbool 

नेहाल अहमद || छात्र-पत्रकार 
2 अगस्त, 2020 की ख़बर

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) की अकादमिक उत्कृष्टता को उसके शताब्दी वर्ष में अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर लगातार मान्यताएं प्राप्त हो रही है. जहाँ एक ओर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को बदनाम करने के लिए प्रिंट सहित इलेट्रॉनिक मीडिया का एक बड़ा हिस्सा कोई मौका नहीं छोड़ता, वहीं दूसरी ओर एएमयू ने एक बार फिर देशभर की सर्वश्रेष्ठ विश्विद्यालयों की रैंकिंग में अपना दबदबा कायम कर उन्हें मुँहतोड़ जवाब दिया है. यह अलग बात है कि इस विषय में टीवी में कोई लाइव बहस या बातचीत नहीं होगी और न ही इसे बड़ा मुद्दा बनाया जाएगा जिससे कि जिन आम लोगों तक एएमयू की ग़लत छवि पहुँचाई गई थी उन तक इसकी सच्ची तस्वीर भी पहुँचाई जा सके.

टाइम्स हायर एजुकेशन, लंदन द्वारा उच्च रैंकिंग प्राप्त करने के अलावा, एएमयू को भारत की प्रमुख न्यूज़ मैगज़ीन "इंडिया टुडे" द्वारा तीसरा रैंक प्राप्त हुआ है. इस रैंकिंग में 1000 से अधिक सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों को शामिल किया गया है. बड़ी बात ये है कि यह रैंकिंग सरकारी एवं निजी दोनों विश्वविद्यालयों की श्रेणी में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) को तीसरे स्थान पर रखता है.

इंडिया टुडे द्वारा घोषित रैंकिंग के अनुसार, एएमयू ने अधिकतम 2000 अंकों में से 1718.6 अंक प्राप्त किए हैं.

90 पीजी पाठ्यक्रमों को प्रदान करते हुए उस आधार की उत्कृष्टता पर AMU को यह सफ़लता प्राप्त हुई है. यह 'सामान्य विश्वविद्यालयों (सरकारी) श्रेणी के तहत चौथी रैंक हासिल करने में भी सफल रही है, जिसमें पिछले तीन वर्षों में सबसे अधिक पेटेंट दिए गए हैं.'

'इंडिया टुडे' ने सर्वश्रेष्ठ लॉ कॉलेजों की रैंकिंग को एएमयू के फैकल्टी ऑफ लॉ में 11 वीं रैंक पर रखा है.

एएमयू के कुलपति, प्रोफेसर तारिक मंसूर ने इस उपलब्धि के लिए संकाय और छात्रों को बधाई दी है, जो विश्वविद्यालय को उसकी असाधारण सफलता के क्षेत्र में ले जाने के उनके प्रयासों का खुलासा करता है. उन्होंने पिछले कई महीनों में COVID19 महामारी के कारण उत्पन्न बाधाओं को एक  तरफ़ रख़ते हुए AMU को अपना स्थान बनाये रखने पर संतोष व्यक्त किया.

उन्होंने कहा "उल्लेखनीय सफलता से पूरे विश्वविद्यालय बिरादरी ने गर्व महसूस किया है और यह विश्वविद्यालय के शिक्षकों की कड़ी मेहनत और ईमानदारी का नतीजा है." 

बहरहाल, यह पहला मौका नहीं है जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को यह सफलता  हाथ लगी हो. इससे पहले भी एएमयू अपना दबदबा कई क्षेत्रों में कायम रखता चला आ रहा है जो आपको किसी न्यूज़ चैनल के साइट पर पढ़ने को तो मिल जाएगा लेकिन उन मुद्दों को प्रमुखता मिले उसे लेकर टीवी चैनल पर कोई लाइव डिबेट, बातचीत होती नहीं दिखेगी. इस तरह एक एजेंडे के तहत एएमयू की ग़लत छवि प्रदान करने की कोशिश में लगा भारत का मीडिया कई बार खुद का ही प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से 'पर्दाफ़ाश' करता हुआ दिखता रहेगा जो उसके दोहरे मापदंड का मानक है. अपने बचाव के लिए जब इन्हें पत्रकारिता दिखानी होगी तो वेब न्यूज़ में वो दिखाया जाएगा और चाटूकारिता सुबह-शाम की ख़बर- डिबेट से तो न्यूज़ चैनलों में दिखती रहेगी.

thenehalahmad@gmail.com

ज़िंदगी और विश्व पर्यटन दिवस 2024

जीवन में ठहराव और घूमने-फिरने दोनों के अपने-अपने मायने हैं। उन मायनों में दोनों का अपना-अपना महत्व है।  अगर इंसान हमेशा एक जगह ह...