Monday, August 29, 2022

ग़ज़ल- फिरते रहे मौजों में दूर अपना किनारा रहा : नेहाल अहमद

स्वरचित ग़ज़ल की पंक्तियां :-

फिरते रहे मौजों में दूर अपना किनारा रहा 
उल्टी धार ही मेरे सफ़र का सहारा रहा 

बाहर बदला बहुत कुछ, अंदर कुछ भी नहीं
तुम मेरे न हो सके, मगर मैं तुम्हारा रहा 

दोनों तरफ़ के मामले में सब्र होता ही नहीं
बहुत लंबा तेरा इंतज़ार मेरा एकतरफ़ा रहा

एक सिरा हाथ लगने पर रास न आया हमको
छूट गया था जो कभी वही मन का प्यारा रहा 

मंज़िल का क्या बना पूछ के शर्मिंदा न कर
बस यूं समझ ले तन्हा चला था मैं तन्हा रहा 

मेरे बाद आने वालों तुम सब महरूम रह गए 
तुम्हारे हिस्से न ख़त रहे न वो डाकख़ाना रहा 

- नेहाल अहमद 
(वर्तमान में मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी के बीएड 2021-23 में अध्ययन; अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (2015-2021) और जवाहर नवोदय विद्यालय (2007-2014) से भी रहा अध्ययन)
nehalahmadofficial@gmail.com
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