Monday, April 20, 2020

पाल घर में दो साधुओं की भीड़ द्वारा मौत एक भीड़तंत्र की प्रौढ़ अवस्था


पाल घर, महाराष्ट्र में 2 साधु और उसके 1 ड्राइवर की बीते दिनों हुई हत्या हमें बताती है कि हम किस ओर जा रहे हैं । इस भीड़ को अख़लाक़, तबरेज़ अंसारी, पहलू खान, जुनैद, व इस प्रकार की अन्य हत्या की घटनाओं के समकक्ष खड़ा करना बिल्कुल ग़लत होगा क्योंकि वहाँ मारने वाले ख़ास धर्म को मानने वाले थे और मरने वाले दीन ए ईस्लाम से था. 

हालाँकि एक प्रक्रिया के तहत हम यह कह सकते हैं कि देश का बहुसंख्यक समाज उन घटनाओं के वक़्त चुप था. उसे शायद इन सब चीज़ों की कोई परवाह नहीं थी. उसे लग रहा था कि मरने वाले हम में से नहीं हैं तो मैं क्यों बोलूँ ? यह मैं आम जनता की बात कर रहा हूँ, उस समाज के बुद्धिजीवियों की नहीं. बेशक, बुद्धिजीवियों ने समय-समय पर अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया है. 

अगर आपको लगता है कि 2 साधुओं की हत्या हो गई तो भारत का बहुसंख्यक समाज भीड़तंत्र के ख़िलाफ़ सोंचने और सरकार को घेरने की तरफ मुड़ेगा तो तो आप ग़लत है क्योंकि जो इस लॉकडाउन में कश्मीर को महसूस नहीं सका वो भीड़तंत्र के ख़िलाफ़ क्या खड़ा होगा ? यह अजीब है लेकिन सत्य है ।

 उधर अल्पसंख्यक यह कह कर ज़िक्र करता है कि तुमने तब नहीं बोला हमारे पर जब हमले हो रहे थे तो यह चिंगारी तुम तक पहुँची । इन सब के बीच जो कहता खुद को लोकतंत्र का चौथा खम्बा है लेकिन काम सरकार के डंडे जैसा काम कर रहा है वो मीडिया कई तरह की हिंसा को प्रायोजित करने का  "साधन" बन रहा है और कुर्सी, सत्ता तो "साध्य" है ही.....उस हिंदुत्व का क्या करना है जहाँ साधु भी सुरक्षित नहीं और दलितों को हिन्दू माना ही नहीं जाता, निचले दर्जे का समझा जाता है....अब यहाँ तक आकर तो लगता है जैसे यह हिंदुत्व नहीं, ब्राह्मणवाद भी नहीं...बहुसंख्यकवाद भी नहीं, बहुसंख्यकवाद तो मुसलमानों पर हो रहे हमले में दिखेगा, दरअसल ये सत्ता पर किसी तरह बने रहने का समीकरण मात्र है....और बहुत बड़ी जनता की आबादी अपनी आलोचनात्मक दृष्टि सत्ता को सौंप चुकी है क्योंकि उसे देश मे रहने वाले तथाकथित 'पाकिस्तानियों' और तथाकथित 'गद्दारों' पर हो रहे हमले हिंसक राष्ट्रवाद की सनक में कहीं न कहीं उसे जायज़ लगते रहे और आज भी लग रहे हैं ....

कल मुस्लिम/दलित/अल्पसंख्यक समाज के लोग प्रताड़ित हो रहे थे और आज वो नफ़रती आग हिंदुओं के साधुओं तक आ पहुँची है. यकीनन यह उस चुप्पी का नतीजा है. सिस्टम को दोष मत दीजिए. हमारा बोलना सिस्टम को बदलता है. हमारी टूटती चुप्पी से सिस्टम की विभाजनकारी दीवार दरकने लगती है. जो लोग इस बात से आपके अंदर ज़हर भरते रहे कि हिन्दू खतरे में है तो उनसे आपको यह कहना होगा कि "हाँ और इसे आपने ही जन्म दिया है" लेकिन हिंदुओं को किस से खतरा है उन्हें आपको यह भी बताना होगा. क्या पाल घर की हत्यारी भीड़ मुस्लिम थी ? अगर नहीं तो फिर ज़रा ठहर कर सोचिए और टीवी देखना बंद कर दीजिए. टीवी ने आपको जानवर बना दिया है यह नहीं कहूँगा क्योंकि सुना है कुत्ता बड़ा वफादार होता है. खामखा.... किसी बेज़ुबान को किसी इंसानों की हत्यारी भीड़ देखकर बदनाम क्यों करूँ....हमें बहुत कुछ अभी पशु-पक्षियों से सीखने की ज़रूरत है ।

- नेहाल अहमद  
छात्र, एम ए हिंदी 
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय,
अलीगढ़.
thenehalahmad@gmail.com 

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